उम्र बीत गई…

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✍️ कवि — गोपाल गावंडे

उम्र बीत गई, उम्र बिताते बीतते,
हर दिन गुज़र गया कुछ नया पाने में।
वो सपनों की राहें, अब यादों की गलियाँ बनीं,
जहां कल था उजाला, आज धुंध सी छाई कहीं।

वहीं रोज़ निकल गया, रोज़ पूरा करने में,
कभी वक्त का पीछा किया, कभी खुद से दूर रहने में।
हर पल किसी मंज़िल की आस में थकते रहे,
और मंज़िल मिली तो दिल ने कहा — “अब क्या बचे?”

आज अपना वो पराया, और जो पराया वो अपना,
समय ने सब बदल दिया, चेहरों के साथ सपना।
कभी जिनके बिना जीवन अधूरा लगता था,
आज वही भीड़ में खोए, अनजान से लगते हैं।

पर फिर भी जीवन का ये सफर खूबसूरत है,
क्योंकि हर मोड़ पर एक सबक, एक कहानी जुड़ी है।
उम्र बीत गई सही, पर एहसास अब भी ज़िंदा हैं —
दिल कहता है, “चलो, आज भी कुछ नया जी लिया जाए।” 

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