आशीर्वाद

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कविता-: 


नव दिवस नव रात्रि माँ तु मुझे प्यार दे, 
तन मन से करूँ नमन,माँ तु मुझे वरदान दे! 
नहीं है ऐसा चित्त,जान पाऊ मै साहित्य,
ज्ञान दे,विवेक दे,लेखनी को मेरी प्रसाद दे,
तन मन से करूँ नमन माँ तु मुझे वरदान दे! 
मन मे है अंधेरा घना,सुझता कुछ नहीं यहाँ,
प्रभाकर की रश्मि बन मुझे तु नया उजास दे!
तन मन से करूँ नमन माँ तु मुझे वरदान दे! 
आज नैतिकता रोती,उर मे दानवता सोती,
बन जा विद्युत,रक्त मे ऊर्जा का संचार  दे !
तन मन से करूँ नमन माँ तु मुझे वरदान दे! 
न्याय की बेदी पर बैठ किया मैने अन्याय सदा,
सत्य का साथ देता रहूँ,ऐसा मुझे संस्कार दे, 
तन मन से करूँ नमन,माँ तु मुझे ,वरदान दे! 
मदमस्त हुआ ऐसे मैं तेरी वन्दना को ही भुला, 
दे ऐसी सजा मुझे,राह से नहीं भट्कु कभी,
हाथ रख शीश पर,मन से अधर्म तु निकाल दे!
नव दिवस नव रात्रि माँ तु मुझे प्यार दे! 

 


द्वारा:- विपिन जैन "श्रीजैन"

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