बुद्ध पूर्णिमा - बुद्धत्व की प्राप्ति की स्वर्णिम गाथा
सहजयोग व बौद्ध दर्शन का मूल तत्व है आत्मसाक्षात्कार अर्थात् निर्वाण की प्राप्ति
बुद्ध पूर्णिमा एक अद्भुत संयोग है भगवान बुद्ध के जीवन का। वैशाख पूर्णिमा की यह पावन तिथि साक्षी है गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति व महानिर्वाण की। सत्य के शोध की जिज्ञासा में 29 वर्ष की आयु में उन्होंने गृहस्थ जीवन का परित्याग कर दिया। विभिन्न मार्गो से सत्य की खोज में वे छः वर्षों तक निरंतर प्रयासरत रहे और अंत में एकांत चिंतन, मनन व समाधि द्वारा स्वयं ही निर्वाण (आत्मसाक्षात्कार) को प्राप्त किया, व वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह संसार अनित्य, अनात्म एवं दु:खमय है। निर्वाण की प्राप्ति के लिए उन्होंने एक साधना पद्धति का उपदेश दिया जिससे आर्यसत्यचतुष्टय का ज्ञान कहा जाता है तथा उसकी उपलब्धि का मार्ग आर्यअष्टांगमार्ग पद्धति बताया।
परम पूज्य श्री माताजी के अनुसार, "बुद्ध ने ये बात महसूस की कि मानव की सबसे बड़ी समस्या उसका अहं है । अपने अहं में व्यक्ति एक के बाद एक अति में चलता जाता है , इसलिए सदैव उन्होंने पिंगला नाड़ी पर कार्य किया और अहं को नियन्त्रित करने के लिए स्वयं को पिंगला नाड़ी पर स्थापित कर लिया । आज्ञा चक्र को यदि आप देखें तो इसके मध्य में ईसामसीह हैं , बाईं ओर बुद्ध हैं और दाईं ओर श्री महावीर सभी को भगवान ( लॉर्ड ) कहा जाता है क्योंकि वे इन क्षेत्रों के शासक हैं । आज्ञा का ये क्षेत्र तप का क्षेत्र है , तपस्या का क्षेत्र है क्योंकि इन लोगों ने हमारे लिए तपस्या की । अब हमें तपस्या करने की कोई आवश्यकता नहीं है। ......... भगवान बुद्ध ने अपने जीवन काल में और सदैव बताया कि त्याग की कोई आवश्यकता नहीं है । किसी भी प्रकार का त्याग अनावश्यक है।"
(प पू श्री माताजी, बार्सिलोना-स्पेन, 20/5/ 1989)
यदि हम बौद्ध दर्शन का गहनता से अध्ययन करें तो पाते हैं कि भगवान बुद्ध जिस मार्ग की बात करते हैं वस्तुतः वह मार्ग सहजयोग का मार्ग है। उन्होंने अपने शिष्यों के लिए रत्नत्रय की व्याख्या की है, प्रथम बुद्धम् शरणम् गच्छामि - बुद्ध की शरण ग्रहण करो। बुद्ध अर्थात् बोध और बोध अर्थात आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति।
द्वितीय - धम्मम् शरणम् गच्छामि - धर्म की शरण ग्रहण करो। भगवान बुद्ध के अनुसार विवेकपूर्ण सदाचार व सांसारिक अलिप्तता का मार्ग ही धर्म का मार्ग है।
तृतीय - संघम् शरणम् गच्छामि - संघ की शरण ग्रहण करो। संघ अर्थात् सामूहिकता।
श्री माताजी निर्मला देवी जी के सानिध्य में कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्म साक्षात्कार प्राप्ति इस युग की अद्वितीय देन है। अतः सहजयोग ध्यान के माध्यम से आत्म साक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात बुद्धत्व की प्राप्ति को इस बुद्ध पूर्णिमा पर अपना ध्येय बनाकर लाभान्वित हों। कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने हेतु www.sahajayoga.org.in और टोल फ्री नम्बर 18002700800 पर सम्पर्क करें।