छिन्दवाड़ा बन गया विश्व का पुण्य तीर्थ

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विश्व को सहज योग की अनुपम भेंट देने वाली संस्थापिका परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी जी की जन्मस्थली है छिंदवाड़ा।21मार्च 1923 को छिन्दवाड़ा में जन्मी श्री माताजी ने आजीवन देश-विदेश में जा जाकर सहज योग की आध्यात्मिक जीवन पद्धति को जनसामान्य के जीवन का हिस्सा बनाने के लिए एक महा अभियान किया था। जिसकी परिणति स्वरूप विश्व के 120 देशों में सहज योग के न सिर्फ केंद्र स्थापित हुए अपितु सहज की साधना ने लोगों के जीवन में ऐसा परिवर्तन दिया कि वे उसके अनुभव के आनंद को हर किसी को बांटना चाहते हैं। जीवन को सरलता से जीने का अचूक सूत्र देने वाली श्री माताजी के प्रति अपनी कृतार्थता प्रदर्शित करना चाहते हैं। इसलिए देश विदेश से पधारे सहज योग के साधकों ने छिंदवाड़ा को तीर्थ समझा। साथ ही सहजयोग संस्था ने  छिंदवाड़ा को श्राइन एवं लिंगा ग्राम के रूप में दो आध्यात्मिक स्थल विकसित कर श्रृंगारित कर दिया।         
श्रीमाताजी निर्मला देवी जी आदिशक्ति महाअवतरण क्यों कही जाती हैं
वर्ष 1970 में विश्व को सामूहिक आत्मसाक्षात्कार की अनुपम भेंट देने वाली श्री माताजी को आदिशक्ति महा अवतरण कहा जाता है क्योंकि उन्होने मानव के विकास को उसके अगले चरण में पहुंचाया है। इसे  इस तरह समझा जा सकता है। क्रमिक उत्क्रांतिवाद  की परंपरा मे अमीबा से लेकर बंदर और फिर मानव का विकास होने के बाद मनुष्य के केवल तीन आयाम  सार्वजनिक रूप से खुले दैहिक, दैविक और भौतिक। वेदों के काल में याने आज से लगभग  21000 वर्ष पूर्व ऋषियो मनीषियों ने आध्यात्म की खोज में आत्मा को ढूँढ निकाला और कोअहम् का उत्तर मिला सोअहम् । परंतु यह खोज गहन व्यक्तिगत साधना का परिणाम थी जिसे पाने हेतु कई जन्मों की तपस्या करना होता था। परवर्ती काल में आदि शंकराचार्य बुद्ध और महावीर ने इसी आनंद को पाने की बात कही। दयानंद सरस्वती ने वेद विद्या का प्रचार इसी ब्रह्म ज्ञान के कारण किया।सोलहवी शताब्दी तक आते आते अनेक सामान्य देह धारी संतों ने इसे पाने की इच्छा व्यक्त की जिसे ईश एकाकारिता या मोक्ष कहा गया। परंतु जन सामान्य को इच्छा व्यक्त करने पर ईश तत्व सुलभ कहाँ हो पाता था यह तो एक कठिन तपस्या की मांग करता था। गुरूनानक देव, तुकाराम, नामदेव, रैदास, मीरा, कबीर, तुलसी सब के सब संतजन सामान्य में आत्मा के जागरण की प्रार्थना करते रहे। और तब आई बीसवी शताब्दी जिसमें श्री माताजी निर्मला देवी ने सामूहिक आत्मसाक्षात्कार की विधि का आविष्कार किया। ब्रह्माण्ड में व्याप्त परम चेतना जिसे ऋतम्भरा प्रज्ञा कहा गया उसे सामूहिक रुप से मानव की हथेलियों पर से बहा दिया। अब विकास के पायदान पर मानव जाति एक कदम आगे बढ़ चुकी है वह ईश्वरीय परम चेतना को अपने हाथों में अनुभव कर सकती है। जिस सत्यमेव जयते का उद्घोष वेद करते हैं, उस परम सत्य को  प्रत्येक मानव के लिए सुलभ कराने का महा अविष्कार किया है श्री माताजी निर्मला देवी जी ने। इसलिए मानव जाति उन्हे महा अवतरण कहती है। ऐसे में सिंहों की भूमि छिन्दवाड़ा का जन्मस्थल सहजयोगी साधकों के लिए पुण्य तीर्थ बन जाता है। अतः विश्व की सामूहिकता माँ की जन्म स्थली पर प्रतिवर्ष उत्सव मनाती है । प्रेम में डूबी हुई सहजयोगियों की धरती सारे विश्व के सहज साधकों के आगमन की बाट जोह रही है। ऐसे भव्य समारोह में कौन शामिल नहीं होना चाहेगा।
सामूहिक आत्म साक्षात्कार एक बड़ा अविष्कार क्यों है 
  जन सामान्य की एक साथ सामूहिक रूप से कुंडलिनी पर कार्य करके  उनमें से प्रत्येक को परम चेतना का अपने सूक्ष्म शरीर पर अनुभव करवाना एक बड़ा अविष्कार है क्योंकि कुंडलिनी ब्रह्म शक्ति है इस पर कार्य करने का अधिकार केवल ब्रह्म शक्ति को ही हो सकता है एक द्वारा  एक पर नहीं अनेक पर एक साथ कार्य करने वाली श्री माताजी निर्मला देवी को इसीलिए महाअवतरण कहा जाता है    हथेलियों पर ईश्वर तत्व के बहने का अनुपम अनुभव मानव के आत्म साक्षात्कारी होने का प्रमाण है , श्री माताजी की कृपा से  यह सर्वसामान्य को  निशुल्क उपलब्ध है वैसे ही जैसे हवा, पानी और अमूल्य जीवन हमें निशुल्क मिला है।
एक विश्व गुरु के रूप में भारत संपूर्ण विश्व को आत्मसाक्षात्कार का अनुभव पाने का आमंत्रण यहीं से देता है। इस पुण्य भूमि में बाँहे फैला कर सबका स्वागत है हृदय खोल कर सबके लिए दुआ है।

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