अनुशासन

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– विपिन जैन 

पेड़ नहीं, पर जाम लगा है बड़ा,
दो पहिया इधर, चौपाया उधर खड़ा।
दूर… बहुत दूर तक पड़ा है जाम,
पर खाए कोई भी नहीं,
जिसने खाया उसे लगा कड़ा।

फिर भी आगे-आगे बड़ा,
तो सबको सड़ाया और खुद भी सड़ा।
सब कहें — यह बात है आम,
लगे जाम सुबह-शाम।

होटल वालों की होती चांदी,
कोई मांगे जलेबी, कोई आलूबड़ा।
और तो और,
पानी का मोल भी बढ़ा-बढ़ा।

न लगता जाम, न होती बात आम,
न परेशान होते महिला-बच्चे,
न मरते मरीज ऐसे रास्ते-रास्ते।
समय पर पहुँचते सब अपने काम,
यदि यातायात नियम का होता पालन।

या पहरेदार डंडा लेकर,
चालान बनाने होता खड़ा।

 चालक रहे यदि शिक्षित,
तो मानव जीवन रहे सुरक्षित।

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