सभी प्रकार की भक्ति में श्रेष्ठ है गुरुमुख से निकली अमृतवाणी का अनुसरण

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मूल ध्यान गुरू रूप है, मूल पूजा गुरू पॉंव।
मूल नाम गुरू वचन है, मूल सत्य सतभाव॥
'संत कबीर'
‘सहजयोग’ बात करता है ध्यान की,  'निर्विचार समाधी’’ की। आज के विज्ञान युग कहे जानेवाले इस कलियुग में ‘योग’, ‘ध्यान’ , ‘आत्मसाक्षात्कार’, ‘निर्विचार समाधी’ या ‘कुंडलिनी जागरण’ ये सारी बातें आपको कपोल-कल्पित लग सकती हैं। कुंडलिनी जागरण के बारे में अनेक किंवदंतियां समाज में फैली हुई हैं। परंतु भगवद्गीता कहती है,  'श्रध्दावान लभते ज्ञानम्’ अर्थात् जिस किसीके हृदय में अपनी आत्मा के प्रति श्रध्दा होगी उसे ही आत्मज्ञान प्राप्त होगा। संत कबीर कहते हैं,ध्यान का मूल गुरू का ध्यान है, पूजा का मूल गुरू चरणों की पूजा है, गुरू के अमृतवचन सभी प्रकार के नामजपों से श्रेष्ठ हैं और यदि साधक को आत्मसाक्षात्कार, या सत्य का साक्षारत्कार पाना है तो उसे साक्षात्कार के प्रति जिज्ञासा होनी चाहिये। किसी साधक के मन मे जब आत्मासक्षात्कार प्राप्त करने की मनीषा यानि की शुद्ध इच्छा जब जाग्रत होती है तो वह सोचता है, मैं कौन हूं ? मेरा इस धरती पर आने का प्रयोजन क्या है? क्या मेरे जीवन का उद्देश्य खाना - पीना, भौतिक सुविधाएं प्राप्त कर आराम से रहना इतने तक ही सीमित है? ऐसे प्रश्‍न जब साधक के मन में उमड़ पड़ते हैं , तो वह ‘स्व’ की खोज में निकलता है। उस ‘स्व’ की प्राप्ति के लिए वो अनेकों साधन करता है। उस स्व को प्राप्त करना जब उसकी प्राथमिकता बनती है तब गुरू उसके ऊपर अपनी कृपा की वर्षा करते हैं।
 परमपूज्य श्री माताजी निर्मलादेवी प्रणित सहजयोग में आप गुरूकृपा रूपी इस प्रसाद को ग्रहण कर सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि, ‘.. Words of sages comes from heaven...इस उक्ति की साक्षात् अनुभूति हम लेते हैं, जब हम श्री माताजी के अमृतवचन अपने सहस्त्रार चक्र से  ग्रहण करते हैं | जिस किसी ने आत्मानंद को पाया उसकी सारी बुरी आदतें, व्यसन, अन्य विनाशकारी आदतें  सहजयोग से छूट जाती हैं। परमपूज्य श्री माताजी कहते हैं, कुंडलिनी मां साधक को गुरूत्व प्रदान करती हैं । इस स्थिति के बाद साधक सच्चे और झूठे गुरूओं के बीच का अंतर जान सकता है। इस प्रकार जब कोई साधक हर दिन के नियमित ध्यान से गहनता प्राप्त करता है तब वह स्वयं गुरू बन जाता है और दुसरों को इस गुरूपद पर आरोहित कर सकता है।  ज्योति से ज्योति जलाने की इस बेला में हमें आत्मविश्वास से श्री माताजी के इस महान विश्व निर्मल धर्म स्थापित करने के स्वप्न को आगे ले जाना है ।  श्री माताजी कहते हैं, जब मानव में गुरूत्व शक्ति आती है, धर्म जाग्रत होता है, तब छोटे बच्चे भी संत कबीर जैसी सत्यवाणी निर्भयता से बोल सकते हैं। जिस आदमी में गुरूत्व जाग्रत होता है तब उसका माथा उन्नत होता है, चेहरा तेजस्वी और वृत्ति निरासक्त बन जाती है, वह स्वयंप्रकाशित हो जाता है और क्षमाशील भी ।
श्री माताजी के गुरुपद रूपी दिव्य आशीर्वाद  को प्राप्त करने हेतु जानकारी निम्न साधनों से प्राप्त कर सकते हैं। यह पूर्णतया निशुल्क है। टोल फ्री नं – 1800 2700 800 बेवसाइट‌ - sahajayoga.org.in

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