हनुमान जयंती विशेष लेख : भक्ति, शक्ति और सेवा का अमर प्रतीक – श्री हनुमान जी

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गोपल गावंडे


भारत की धार्मिक परंपराओं में हनुमान जी का स्थान सर्वोपरि है। चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला उनका अवतरण दिवस केवल एक पर्व नहीं, बल्कि सेवा, भक्ति और निष्ठा का अद्भुत उत्सव है।
कहते हैं, जब बचपन में हनुमान जी ने सूर्य को फल समझकर निगल लिया, तब इंद्रदेव ने उन पर वज्र से प्रहार किया जिससे उनकी हनु (ठुड्डी) पर चोट आई। तभी से वे हनुमान कहलाए। मूर्छा की स्थिति में जब उन्हें जल छिड़ककर होश में लाया गया, तब सभी देवताओं ने उन्हें दिव्य शक्तियां और अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए, और वे बन गए ‘महावीर’ हनुमान।

सेवा का जीवंत उदाहरण
हनुमान जी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि निष्काम सेवा ही जीवन का परम उद्देश्य है। उन्होंने श्रीराम की सेवा में जीवन समर्पित कर दिया – बिना कोई अपेक्षा किए, केवल प्रेम, श्रद्धा और निष्ठा से।
"हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम।।"
यह केवल दो पंक्तियाँ नहीं, बल्कि जीवन के हर कार्य में उद्देश्य, समर्पण और सेवा की भावना के प्रतीक हैं।

अहंकारहीन बल और ज्ञान का स्वरूप
बाल्यकाल में सूर्य को निगल जाने वाला योद्धा, रावण की स्वर्ण लंका को दहन करने वाला पराक्रमी, संजीवनी पर्वत उठाने वाला वीर — इतनी शक्तियों के बावजूद हनुमान जी के भीतर अहंकार का लेशमात्र भी नहीं था।
जहां आज की दुनिया में थोड़ी सी सफलता भी व्यक्ति को अभिमानी बना देती है, वहीं हनुमान जी श्रीराम के समक्ष सदैव सेवक बने रहे। उन्होंने अपने हर पराक्रम का श्रेय प्रभु श्रीराम को दिया।

रामकथा में हनुमान – एक आदर्श कड़ी
हनुमान जी का चरित्र रामकथा का मुख्य आधार है। उन्होंने न केवल सीता माता की खोज की, अपितु श्रीराम के संदेश को लंका पहुंचाया, रावण का अहंकार चूर किया, और वानरसेना का नेतृत्व करते हुए धर्म की विजय में निर्णायक भूमिका निभाई।

उनके भीतर समाहित गुण –
वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, नेतृत्व क्षमता –
हर युग के मानव के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

भक्तों में सर्वोपरि – श्री हनुमान जी
इतिहास में कई महान भक्त हुए – भक्त प्रहलाद, नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णो माता के श्रीधर भक्त – परंतु हनुमान जी, भक्तों में हिमालय के समान हैं – अडिग, विशाल और स्थायी।
"प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया।"
वे भगवान राम के नाम और स्वरूप में इतने लीन थे कि उनकी चेतना ही श्रीराम के लिए समर्पित हो गई।

आज भी सशरीर विद्यमान
मान्यता है कि हनुमान जी आज भी सशरीर इस पृथ्वी पर विद्यमान हैं और जहां-जहां श्रीराम का स्मरण होता है, वहां उनकी उपस्थिति सुनिश्चित है। वे केवल धार्मिक कल्पना नहीं, बल्कि निष्ठा, पराक्रम और विनम्रता का सजीव आदर्श हैं।

हनुमान जयंती का सार
हनुमान जयंती मनाना केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होना चाहिए। यह दिन है —
उनके गुणों को आत्मसात करने का,
सेवा और विनम्रता का संकल्प लेने का,
और अहंकार का परित्याग कर समर्पण के मार्ग पर चलने का।

जय श्री राम | जय बजरंग बली
हनुमान जयंती की शुभकामनाएं!
श्री हनुमान जी को कोटिशः नमन।

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