“हिंदी पत्रकारिता: संघर्ष, सेवा और समर्पण की यात्रा”
✍️ संपादकीय लेख — हिंदी पत्रकारिता दिवस पर
आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हम उन सभी पत्रकारों, संपादकों और समाचार संस्थानों को नमन करते हैं, जिन्होंने हिंदी भाषा को जन-जन तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई। यह दिवस हमें 30 मई 1826 की याद दिलाता है, जब पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ प्रकाशित किया था — वह दीपक जिसने भारतीय समाज में जागरूकता की पहली लौ जलाई।
पत्रकारिता: केवल पेशा नहीं, जिम्मेदारी
हिंदी पत्रकारिता केवल समाचार देने का माध्यम नहीं रही, यह सामाजिक बदलाव, स्वतंत्रता संग्राम, और जन-जागरण की प्रेरक शक्ति रही है। गाँधी, तिलक, मालवीय, और गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे नेताओं ने अखबारों को आजादी की मशाल बनाया। आज भी पत्रकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में सत्ता से सवाल करते हैं, समाज की नब्ज टटोलते हैं, और आम आदमी की आवाज बनते हैं।
चुनौतियाँ: विश्वास की कसौटी पर
आज जब ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ की दौड़, टीआरपी की भूख और डिजिटल माध्यमों का प्रभाव बढ़ा है, तब हिंदी पत्रकारिता को अपने भरोसे और साख की परीक्षा देनी पड़ रही है। फेक न्यूज़, पेड न्यूज़, और मीडिया का ध्रुवीकरण एक गंभीर चुनौती बन गए हैं। ऐसे में संपादकों, संवाददाताओं और प्रकाशकों को यह याद रखना होगा कि पत्रकारिता केवल ख़बरें बेचना नहीं, बल्कि सच की खोज करना है।
भविष्य की ओर: उम्मीद की किरण
हिंदी पत्रकारिता के सामने अवसर भी अपार हैं। आज ग्रामीण भारत तक मोबाइल और इंटरनेट पहुँच चुका है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर हिंदी समाचार की माँग तेजी से बढ़ रही है। अगर पत्रकारिता विश्वसनीयता और गुणवत्ता को अपना ध्येय बनाए, तो यह फिर से जन-जन का विश्वास जीत सकती है।
नमन उन योद्धाओं को
इस हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हम उन सभी वरिष्ठ पत्रकारों, संपादकों, संवाददाताओं और मीडियाकर्मियों को धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने बिना डरे सच की मशाल जलाए रखी। आने वाली पीढ़ियों के लिए यह प्रेरणा है कि पत्रकारिता केवल नौकरी नहीं, एक मिशन है।
आपका,
गोपल गावंडे
मुख्य संपादक, रणजीत टाइम्स