अर्पण मै भारतवर्ष को

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एक कविता:- *राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर.. 

मेरा अभिमान मै स्वयं सेवक सौ वर्षिय संघ का,
देश के लिये खूब उपयोग रहे मेरे अंग अंग का,
राजपाट क्या घरबार क्यॉ,मेरा रोम रोम संघ का! 

उच्च हो विचार,त्रुटि विहीन कार्य, वीरों का वंदन, 
राष्ट्र सम्मान,समर्पण भावना,सेवा से जुड़े जीवन,
षट प्रकार कर्मो के साथ जिऊ मै प्यारा संघ का,

हार नहीं मानूंगा बिना थके,करूँ मै सेवा दिन रात,
मै कर्म मे जुटा रहूँ,कब सुनु आलोचना की बात,
भारतवर्ष हो सर्वोत्तम,ऐसा प्रचारक बनू संघ का, 

मै यूँ ही चलता रहूँगा जीवन मेरा चलता रहेगा,
कर्तव्य पथ हो कठिन,कभी नहीं मैं निराश होऊंगा, 
वक्त देगा साथ मेरा,डटा हूँ आशावादी मै संघ का! 

सीमाओं पर पहरा देने वाले प्रहरी को करे नमन,
दुश्मन से लड़ते हुए दे दिया बलिदान उसे नमन, 
सेना का करे सम्मान,कहे हर सिपाही संघ का! 

समंदर की लहरों ने जब भी जनमानस को घेरा,
विपदाओं ने घर घर डाल लिया हो अपना डेरा,
सर पे बांध कफन लड़ा मैं,समर्पित सेवक मै संघ काl
मेरा अभिमान मै स्वयं सेवक सौ वर्षीय संघ का l


द्वारा:- विपिन जैन "श्रीजैन"
         218, श्रीमंगल नगर इंदौर

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