भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित मरीजों में गुर्दे की बीमारी सात गुना अधिक

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भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के काम कर रहे संगठनों ने कहा कि गैस से प्रभावित लोगों में बीमारियों का प्रसार उस समय गैस से अप्रभावित रहे लोगों में तेज है। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के साथ काम कर रहे संगठन संभावना ट्रस्ट क्लिनिक ने कहा कि यह निष्कर्ष 16 वर्षों के दौरान 16,305 गैस प्रभावित और 8,106 अप्रभावित मरीजों के क्लिनिकल डेटा के विश्लेषण पर आधारित है।  डॉ. उषा आर्या ने बताया कि पिछले 16 वर्षों में गैस से प्रभावित समूह में श्वसन और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां अप्रभावित समूह की तुलना में 1.7 से 2 गुना अधिक पाई गईं। इसके अलावा, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां, जिन्हें पहले गैस रिसाव से नहीं जोड़ा गया था, भी तेजी से बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि यह आंकड़ा मेडिकल रिसर्च और प्रभावित लोगों के लिए बेहतर उपचार करने की सुविधा बढ़ाने की आवश्यकता को प्रकाश में ला रहा है। उन्होंने बताया कि गैस प्रभावित मरीजों में मधुमेह रोग पांच गुना अधिक पाया गया। वहीं, अप्रभावित लोगों की तुलना में उच्च रक्तचाप तीन गुना अधिक रहा। इसके अलावा गैस प्रभावितों में डिप्रेशन की बीमारी 2.7 गुना ज्यादा है। वहीं, गुर्दे संबंधी रोग भी सात गुना अधिक है। 
गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सोनाली मित्तल ने बताया कि गैस प्रभावित महिलाओं में समय से पहले या प्रारंभिक रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के मामले 2.6 गुना अधिक थे।
डॉ. बी रघुराम ने बताया कि हृदय संबंधी बीमारियां जैसे मायोकार्डियल इंफार्क्शन और इस्केमिक हार्ट डिजीज गैस प्रभावितों में 4.5 गुना ज्यादा थीं। तंत्रिका संबंधी बीमारियों में हेमीप्लेजिया और न्यूराल्जिया के मामले चार गुना ज्यादा पाए गए। डॉ. पी.के. अस्वथी ने कहा कि गैस प्रभावितों में न्यूरोपैथी के मामले सात गुना अधिक थे। साथ ही, हाइपोथायरायडिज्म पिछले सात वर्षों में दोनों समूहों में बढ़ा है, लेकिन गैस प्रभावित समूह में यह 1.7 गुना अधिक पाया गया।
संभवना ट्रस्ट के संस्थापक ट्रस्टी सतिनाथ सारंगी ने कहा कि गैस पीड़ितों में ज्ञात और नई बीमारियों का लगातार उच्च स्तर दिख रहा है, जो यह दर्शाता है कि विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता बनी हुई है।"
2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था, जिसमें 5,479 लोग मारे गए थे और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। यह विश्व की सबसे भयंकर औद्योगिक त्रासदियों में से एक है। इसके पीड़ित आज भी तिल तिल कर मौत के मुंह में समा रहे हैं।
साभार अमर उजाला

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