श्रद्धेय संभाजी महाराज

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श्रद्धेय संभाजी महाराज, जिन्हें संभाजी राजे के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के महान योद्धाओं में से एक थे। उनका जन्म 14 मई 1657 को हुआ था। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे और उनके बाद मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति बने। संभाजी महाराज की माताजी का नाम साईबाई था और उन्होंने अपनी माँ के संस्कार और अपने पिता के पराक्रम से प्रेरणा लेकर अपने जीवन का मार्गदर्शन किया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
संभाजी महाराज का बचपन बहुत ही संघर्षपूर्ण था। उन्हें बचपन से ही युद्ध और राजनीति की शिक्षा दी गई। अपने पिता शिवाजी महाराज की छत्रछाया में उन्होंने युद्ध की कला और शासन की नीति सीखी। वे संस्कृत और कई अन्य भाषाओं के ज्ञाता थे, जिससे उनकी विद्वता का भी परिचय मिलता है।

राज्याभिषेक और शासनकाल
संभाजी महाराज का राज्याभिषेक 20 जुलाई 1680 को रायगढ़ किले में हुआ। उनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य ने न केवल अपने क्षेत्र का विस्तार किया, बल्कि उन्होंने मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के खिलाफ भी कई सफल युद्ध लड़े। उनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य ने अपनी सीमाओं को बढ़ाते हुए एक मजबूत साम्राज्य का निर्माण किया।

वीरता और पराक्रम
संभाजी महाराज की वीरता और पराक्रम की कई कहानियाँ इतिहास में दर्ज हैं। वे एक अद्वितीय योद्धा थे, जिन्होंने मुगल साम्राज्य के औरंगज़ेब जैसे शक्तिशाली शासक के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया। संभाजी महाराज ने अपने पिता के द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। वे कभी भी धर्म और स्वराज के साथ समझौता नहीं किया और अपने आदर्शों के प्रति अडिग रहे।

अंतिम समय और बलिदान
संभाजी महाराज को 1689 में मुगलों ने गिरफ्तार कर लिया। उन्हें और उनके सहयोगी कवि कलश को अत्यंत क्रूरता से यातनाएँ दी गईं, लेकिन वे मुगलों के सामने कभी झुके नहीं। 11 मार्च 1689 को औरंगज़ेब के आदेश पर उनकी हत्या कर दी गई। उनकी मृत्यु ने मराठा साम्राज्य को गहरे सदमे में डाल दिया, लेकिन उनकी वीरता और बलिदान ने मराठा योद्धाओं को और भी प्रेरित किया।

बलिदान दिवस
संभाजी महाराज का बलिदान दिवस 19 जून को मनाया जाता है। यह दिन उनके शहादत के रूप में याद किया जाता है, जब उन्होंने अपने धर्म और स्वराज की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इस दिन, लोग उनकी वीरता और बलिदान को स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

संभाजी महाराज का जीवन एक प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने अपने पिता के आदर्शों को जीवित रखा और स्वराज, स्वाभिमान, और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। आज भी उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और उनकी वीरता को नमन किया जाता है।

संभाजी महाराज के अद्वितीय पराक्रम और शौर्य की गाथा हमें यह सिखाती है कि अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए हर चुनौती को स्वीकार करना चाहिए और वीरता के साथ उसका सामना करना चाहिए। वे सच्चे मायने में एक महापुरुष थे, जिनकी वीरता और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

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