दैवीय संपदा को प्राप्त करने का मार्ग है सहजयोग

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तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।
                              -श्रीमद्भगवद्गीता 


अर्थ - तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धि, वैर भाव का न रहना और मान को न चाहना, हे भरतवंशी अर्जुन ! ये सभी दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं।


प. पू. श्री माताजी निर्मला देवी प्रणित सहजयोग एक अनूठी ध्यान पद्धति इसलिये है क्योंकि  यह  ध्यान के  साधक को  सर्व-प्रथम 'र्निविचार अवस्था' प्रदान करता है और तद्नंतर साधक आत्मपरीक्षण कर अपनी अध्यात्मिक उत्थान की और अग्रसर होता है। पाँच हजार वर्ष पूर्व  भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह योग यह बताया था और आज के कलियुग में पुनः एक बार आत्मा का ज्ञान देने वाला यह योग प. पू. श्री माताजी ने हम सभी के लिये प्रतिस्थापित किया है। इस ध्यान योग के माध्यम से जब हमारे सूक्ष्म शरीर में स्थित एक-एक चक्र स्वच्छ होते हैं तब हम धीरे-धीरे - अर्जुन जैसे देवी संपदा से अलंकृत होते हैं। जब हमारा मूलाधार चक्र स्वच्छ होता है तब हम अंतस से शुद्ध, निर्मल, निरंजन और  अबोध बनते हैं।नियमित ध्यान से जब हमारा हृदय चक्र स्वच्छ होता है तब इसे धृती: अर्थात धैर्य, आत्मविश्वास प्राप्त होता है । हमारे अंतकरण में सभी के लिए मित्रता की भावना और  अतिशयता का अभाव व संपूर्ण संतुलन की अवस्था प्राप्त होती है l
आज्ञा चक्र स्वच्छ होते ही हम क्षमाशील बन जाते हैं और सहस्त्रार चक्र पर नियमित ध्यान करने से हमें तेज अर्थात तेजस्विता प्राप्त होती है। हमारे संपर्क में आने वाले नकारात्मक व्यक्ति को भी हमारी उपस्थिति  में गलत बर्ताव करने का साहस नहीं होता । 
    प. पू. श्रीमाताजी कहते हैं कि उपरोक्त वर्णित सारे गुण एक सहज साधक में स्थित होने चाहिये अन्यथा सहज योग नहीं बढ़ेगा। भगवान श्रीकृष्ण ने हमें आत्मपरीक्षण करना सिखाया। हमें अपने अंदर के दोष ढूंढकर उन्हें निकालना होगा। हमे अपनी दृष्टि दूसरों से हटाकर अपनी ओर करनी होगी। श्री कृष्ण जी का स्थान हमारे विशुद्धि  चक्र पर है और उनका ध्यान करने से हमारे अंदर के सारे दोषों की सफाई होती है और हमारे अंदर श्री कृष्ण जी के गुण जैसे की मधुरता, आल्हाद, हर्षोल्लास प्रस्थापित होता है। हम अपने आपसे या अन्य किसी से कभी भी नाराज नहीं होना चाहिये, यही सही मायने में श्री कृष्ण जी की पूजा है। तो आईये अपने अंदर दैवी संपदा धारण करने व जागृत करने के लिए सीखते हैं सहजयोग।
अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।

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