सहजयोग मस्तिष्क परे जाकर विकसित होना है : श्री माताजी

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       श्री माताजी निर्मला देवी जी द्वारा प्रतिस्थापित सहजयोग ध्यान की वो सनातन पद्धति है जिसे आधुनिक वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने भी स्वीकार किया है। मनुष्य की जिन शारीरिक व मानसिक जटिलताओं को आधुनिक विज्ञान समझ नहीं सका उन्हें सहजयोग द्वारा समझाया गया है। विभिन्न शारीरिक रोगों में, मानसिक तनाव को दूर करने में, कृषि का उत्पादन बढ़ाने में, वातावरण की नकारात्मकता को दूर करने में सहजयोग ने अवर्णनीय प्रभाव दिखाया है।
परंतु इसका वास्तविक उद्देश्य कहीं व्यापक है यह आत्मा के परमात्मा से योग का साधन है इसके पश्चात समस्त बाधाएं स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं। यह जीवंत अनुभव है जिसे पढ़कर नहीं समझा जा सकता  सहजयोग विवेक व बोध के द्वारा क्रिया एवं विचारों से बाहर निकाल कर ध्यान का मार्ग प्रशस्त करता है। और हमें उस ज्ञान व विद्या का साक्षात्कार प्रदान करता है जो हमारे साथ जन्मी है, जो सहज है। श्री माताजी ने अपनी अमृतवाणी में वर्णित किया है कि,
"सहजयोग को मानसिक न बनाएं। आप इसे मानवीय चेतना के माध्यम से नहीं समझ सकते। मैंने आपको सैंकड़ों बार कहा है कि आप अपने दिमाग की सीमित क्षमता से सहजयोग को नहीं समझ सकते। अपने हृदयों को खोलें।........ आपको सहजयोग में विकसित होना होगा। यह समझ लें कि आपको अपने दिमाग के पार जाकर विकसित होना है। 
     अपने मस्तिष्क या बुद्धि से, अगर हम समझ पाते, या हम अपना उत्थान पा लेते, तो यह इसे पाने का सबसे आसान तरीका होता। लेकिन नहीं, प्रत्येक मानव के पास एक सीमित सोच वाला दिमाग है। तो कोई इस ओर जाता है। कोई उस तरफ जाता है। कोई उस तरफ जाता है। और इसी तरह हमारे सामने युद्धों की समस्या है। हमारी समस्या यह है कि हर किसी का दृष्टिकोण अलग-अलग होता है। (18 जुलाई 1994)
परंतु शाश्वत सत्य एक है अतः अपने आप को इस भ्रम, संदेह व भटकाव से बाहर निकल कर सत्य के अनुभव का एक अवसर अवश्य प्रदान करें।
सहजयोग ध्यान का आनंद और अनगिनत लाभ लेने हेतु आप जानकारी टोल फ्री नं – 1800 2700 8 से प्राप्त कर सकते हैं

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