अपूर्णता के भाव को दूर कर संतुष्टि प्रदान करता है सहजयोग

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ईश्वर प्रदत्त इस प्रकृति व मानव मात्र के जीवन को सुंदर बनाना ईश्वर का ही कार्य है, क्योंकि जिस चीज को ईश्वर ने ही निर्मित किया है उसमें बदलाव लाना हमारे हाथ में नहींं।   फिर यह कैसे और क्यों कहा जाता है कि जीवन को सुंदर बनाना हमारे हाथ में है।  यह तो पहले से ही सुंदर है क्योंकि ईश्वर अपनी हर  रचना को जैसी जरुरत है वैसी ही सुंदरता से निर्मित करता है।  बस हम मानव की दृष्टि उस सुंदरता को देख नहीं पा रही है क्योंकि हम ऊपरी सुंदरता देखते हैं आंखों से।  आंतरिक सौंदर्य जो आत्मिक सौंदर्य है उसे देखने के लिए गहन ध्यान से आत्मा को जागृत करना होगा, तभी हम सृष्टि की कृतियों का आनंद ले सकते हैं। 
हम सृष्टि के निर्माता को जिस भी नाम से पुकारें, भगवान कहें, अल्लाह कहें, गॉड कहें, प्रकृति कहें या अन्य किसी नाम से जाने, उसने सृष्टि को इसी तरह से बनाया है कि उसमें कोई भी कमी है ही नहीं। वह अपने आप में परिपूर्ण है। अपने आप में सुंदर है।  
  21 दिसम्बर 1986 के एक प्रवचन में श्री माताजी कहती हैं, 'परमात्मा ने इतनी सुन्दर सृष्टि की रचना किसलिए की है?, यह एक प्रश्न हजारों वर्षों से पूछा गया है। इसका कारण समझना अत्यंत सरल है। जिस सुन्दरता की रचना की जाती है, वह सुन्दरता स्वयं अपने आप को नहीं देख सकती। ठीक इसी तरह, परमात्मा, जो कि स्वयं सुंदरता का स्त्रोत हैं, वह परमात्मा अपनी स्वंय की सुंदरता को नहीं देख सकते, जैसे एक मोती अपनी सुंदरता देखने के लिए अपने अंदर प्रवेश नहीं कर सकता, जैसे आकाश अपनी स्वंय की सुंदरता को नहीं समझ सकता। सितारे अपनी सुंदरता को नहीं देख सकते। सूर्य अपनी चमक को नहीं निहार सकता। इसी तरह से, सर्वशक्तिमान परमात्मा भी अपने स्वंय के अस्तित्व को नहीं देख सकते। उस परमात्मा को एक दर्पण की जरूरत होती है। और यही कारण है कि उस परमात्मा ने इस सुन्दर सृजन की रचना अपने लिए एक दर्पण के रूप में की है।''  यानि जैसे हम  स्वंय में सौंदर्य तलाशते हैं वैसे ही ईश्वर भी हममें स्वयं के सौंदर्य को तलाशते हैं।
इसीलिए हमारी सभी आवश्यकताओं को प्रकृति पूरा करती है।   जितनी भी असंगति या बुराई हम देखते हैं या उत्पन्न होती रहती हैं, वे सभी हमारे ही द्वारा बनाई गई हैं । साथ ही, हमारा मस्तिष्क इस रूप में विकसित हो जाता है कि वह हमेशा भविष्य को देखता है। हमारे   मस्तिष्क के हमेशा ही भविष्य में ही दौड़ते रहने के कारण हमारे  अंतर को हमेशा एक अपूर्णता की भावना घेरे रहती है।
       आधुनिक जीवन के तरीकों ने, भौतिकवादिता ने मनुष्यता पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डाले हैं, अपूर्णता के एहसास ने इस भावना को और गहरा कर दिया है। साथ ही,  यह गलत विश्वास भी दिलाया है कि इस अपूर्णता को पूर्ण करने के लिए आपको अधिक धन कमाना होगा, अधिक भौतिक वस्तुओं का अर्जन करना होगा। इन बातों ने हमारे मन को चारों ओर से इस तरह से घेर लिया है कि हम दूसरी दिशा में सोचने के लिए अधिक समय नहीं निकाल सकते।
     यदि आप जीवन की सुंदरता को देखना चाहते हैं तो, थोड़े दिनों के लिए, केवल कुछ सप्ताह के लिए एक प्रयोग करके देख सकते हैं। अपने मन पर, अपने विचारों पर नजर रखने की कला, और जब भी मन भविष्य की ओर भागे तो उसे रोकने की कला सीखते हैं। एक ऐसी विधि जब हम स्वयं से कहने लगेंगे कि मैं पूर्ण हूं, मेरे जीवन में कोई भी कमी नहीं है, मैं खुश हूं, मुझे और किसी भी भौतिक वस्तु की तलाश नहीं है। कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो मुझे पूर्ण कर सकती है, क्योंकि मैं स्वयं ही पूर्ण हूँ।  
सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात् यह भाव हममें सहज व स्वयं ही विकसित हो जाता है। अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर प्राप्त कर सकते हैं।

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