स्वयं का परिष्कार ही सहजयोग ध्यान है
तपस्या भी मानसिक, वाचिक और कर्म आधारित है। मन को सभी इंद्रियों व उनके सुख में जाने से रोकना मानसिक तप है। व्यर्थ नहीं बोलना और मौन रखना वाचिक तप है। किसी इच्छापूर्ति या पाने की आकांक्षा हेतु व्रत रखना या अपने शरीर को कष्ट देना जैसे हठयोग आदि सब शारीरिक तप है।
तप आध्यात्मिक जीवन की आधार-शिला है। 'तप आधार सब सृष्टि भवानी' लिखकर संत तुलसी ने इसे महिमा मंडित किया है। तपस्वी अपने जीवन की दशा स्वयं निर्धारित करते हैं, जबकि सामान्य व्यक्तियों का जीवन पूर्णत: परिस्थितियों के अधीन होता है। तपस्वी तप की ऊर्जा से परिस्थिति की प्रतिकूलता को भी अपने अनुकूल बना लेते हैं। वस्तुत: तप करना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसकी कुछ मर्यादाएं हैं। सनक में आकर कुछ भी करते रहने का नाम तप नहीं है। नमक न खाना, नंगे पांव चलना, भूखे रहना आदि क्रियाओं से शारीरिक कष्ट तो अवश्य होता है, किंतु कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं प्राप्त होता। सुनिश्चित संकल्प के साथ तप पर अमल गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए। तप से हमारे सुप्त संस्कारों का जागरण होता है और यह जागरण हमारे आध्यात्मिक विकास को गति देता है। तप का उद्देश्य मात्र ऊर्जा का अर्जन ही नहीं, उस ऊर्जा का संरक्षण व सुनियोजन भी है। जो अपनी ऊर्जा को संरक्षित कर लेता है वह सामर्थ्यवान हो जाता है। तप कोई चमत्कार न होकर स्वयं का परिष्कार है।
सहज योग एक ऐसा ही परिष्कार है वहां चमत्कार स्वत: तो होते हैं पर तपस्या से, और यह तपस्या है ध्यान। सहज योग की प्रणेता हमारी परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ने ध्यान की जो विधि बताई है वो आसान है समझने में। लेकिन सहज योग की मर्यादाओं का पालन करते हुए दिन में दो बार ध्यान में बैठकर सिखाई गई विधि से ध्यान धारणा करना है। धीरे - धीरे नाड़ियां शुद्ध होती हैं और हम चैतन्य के प्रवाह(हथेली में ठंडी हवा का बहाव) को महसूस करने लगते हैं। यही चैतन्य हमारी जिंदगी में आश्चर्यजनक बदलाव लाते हैं। हम स्वयं को भी निरोगी रख पाते हैं और दूसरों को भी। ध्यान धारणा से जागृत चक्र हमारे सद्गुणों को भी जागृत करते हैं। गृहस्थ जीवन जीते हुये अपने परिवार और समाज के प्रति संपूर्ण दायित्व निभाते हुये सहज योगी बना जा सकता है।
अहंकार तप के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। अत: ईश्वर प्राप्ति के लिए अहंकार को त्यागना ही पड़ता है। तपस्या करने में असुर सबसे आगे रहे हैं। तपस्या के द्वारा वे भगवान से मनचाहा वरदान प्राप्त करते रहे हैं। आलस्य को त्यागकर वर्षों तक कठोर तपस्या करने का साहस उनमें होता है, किंतु अपने अहंकार का त्याग न कर पाने के कारण वे तप से प्राप्त ऊर्जा का दुरुपयोग करते हैं। सहज योग हमें सकारात्मक उर्जा देता है। नकारात्मक सोच के साथ भी यदि कोई सहज योग का अभ्यास करता है तो उसके सोच में भी बदलाव आने लगता है। यह बदलाव ही हमें जीवन की सही दिशा देता है।
सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।