सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट पर सांसदों को छूट से किया इनकार

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नोट के बदले वोट देने के मामले में सांसदों को किसी भी तरह की छूट से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत की 7 जजों की वाली संवैधानिक बेंच ने सोमवार को यह फैसला सुनाया। इस तरह कोर्ट ने अपने ही पुराने फैसले को पलट दिया है। अदालत ने अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए कहा कि घूसखोरी के मामले में सांसदों को भी कोई राहत नहीं दी जा सकती। 1993 में नरसिम्हा राव सरकार के समर्थन में वोट करने के लिए सांसदों को घूस दिए जाने का आरोप लगा था।
इस पर 1998 में 5 जजों की बेंच ने 3-2 के बहुमत से फैसला दिया था कि संसद में जो भी कार्य सांसद करते हैं, यह उनके विशेषाधिकार में आता है। लेकिन अब शीर्ष अदालत ने विशेषाधिकार की उस परिभाषा को ही बदल दिया है। बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 105 आम नागरिकों की तरह ही सांसदों और विधायकों को भी रिश्वतखोरी की छूट नहीं देता है। दरअसल 1998 के फैसले में संवैधानिक बेंच ने कहा था कि संसद में यदि कोई कार्य होता है तो वह सांसदों का विशेषाधिकार है और उस पर मुकदमा नहीं चल सकता। लेकिन अब उस राहत को कोर्ट ने नए फैसले से वापस ले लिया है।
इस फैसले के अनुसार यदि वोट के बदले सांसद घूस लेते हैं तो उन पर भी आम नागरिकों की तरह ही केस चलेगा। भले ही उन्होंने संसद में सवाल पूछने के लिए ही क्यों न घूस ली हो। 
सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले में सख्त लाइन लेते हुए कहा कि सांसदों का घूस लेना या फिर भ्रष्टाचार करना संविधान के सिद्धांतों और उसके आदर्शों का हनन करना है।
सांसदों के विशेषाधिकारों को स्पष्ट करते हुए बेंच ने कहा कि यह चीज संसदीय कार्यवाही पर लागू होती है। लेकिन संसदीय काम के लिए यदि उससे बाहर कोई घूस ली जाती है तो उस पर छूट नहीं मिल सकती। बेंच ने कहा कि यदि इस तरह की अनचेक छूट दी गई तो फिर एक ऐसा वर्ग तैयार हो जाएगा, जिसे भ्रष्टाचार पर भी राहत मिलेगी। इस तरह एक सांसद या फिर विधायक को संसद या विधानसभा में भाषण अथवा वोट के लिए नोट की छूट नहीं जा सकती।
साभार लाइव हिन्दुस्तान

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