मप्र के नेमावर में नर्मदा नदी के तट पर बिना नींव के बना है प्राचीन सिद्धनाथ मंदिर
पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व को अपने में समेटे नर्मदा किनारे स्थित सिद्धनाथ मंदिर स्थित है। वशिष्ठ संहिता के अनुसार यहां के शिवलिंग की स्थापना ब्रह्माजी के मानसपुत्रों सनकादिक ऋषियों ने की थी। स्कंद पुराण में भी इस मंदिर का वर्णन है। पद्मपुराण में बताया गया कि यह स्वयंसिद्ध शिवलिंग है। पूजन-अर्चन से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
रेवाखंड के 1362 श्लोक में वर्णित है कि यहां अभिषेक करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। द्वापर काल से भी मंदिर का नाता जोड़ा जाता है। मंदिर बगैर नींव का है। इसकी पुष्टि करीब 40 वर्ष पूर्व उत्खनन में हुई थी। मंदिर का मौजूदा स्वरूप 11वीं सदी में परमार राजाओं द्वारा प्रदान किया गया है।
मंदिर पूर्णत: पाषाण से निर्मित है तथा भूतल से 80 फीट ऊंचाई तक है। इसके निर्माण में नीलाभ व पीलाभ बालुकामय पत्थरों का उपयोग किया गया है। मंदिर के आंतरिक एवं बाह्य भाग में विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों का अंकन किया गया है। महंत गजानंद पुरी ने बताया गाय के गोबर व बेल फल, हवन में उपयोग में आने वाली सामग्री से भस्म तैयार कर आरती की जाती है। महाशिवरात्रि पर भगवान सिद्धनाथ का दूल्हा रूप में महाशृंगार किया जाता है शिवलिंग पर सवा मन की अष्टधातु के मुखौटे को रखकर, हीरा, मोती, पन्ना, पुष्प आदि का उपयोग कर शृंगार किया जाता है। इस छबीना रूप के दर्शन वर्ष में एक बार ही भक्तों को होते हैं।
पौराणिक रहस्य से परिपूर्ण कर्णेश्वर महादेव मंदिर
प्राचीन श्रीकर्णेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मंदिर के गौरवपूर्ण इतिहास व पौराणिक महत्व के चलते यहां सालभर लोग आते हैं। मंदिर के पुजारी पं. हेमंत दुबे के मुताबिक मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह मंदिर कौरव-पांडवकालीन है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर का मुख पहले पूर्व दिशा में। कुंती बालू के शिवलिंग बनाकर पूजन कर रही थी। इस बीच पांचों पांडव आए और माता कुंती से पूछा कि आप बालू के शिवलिंग की पूजा क्यों करती हो, तब कुंती ने कहा कि अपने यहां पर मंदिर नहीं होने से बालू के शिवलिंग बनाकर पूजा कर रही हूं जो मंदिर यहां है वह तुम्हारे बड़े भाइयों के हैं। यह सुनकर पांचों भाई मां के पास से चले और मंदिर के मुख्य द्वार को पूर्व से पश्चिम की ओर कर दिया। मंदिर में पांच गुफाएं हैं जो कि मंदिर में ही स्थित है। एक गुफा में माताजी का स्थान है। मान्यता है कि माता के समक्ष एक गर्म तेल का कड़ाव रहा करता था। उस गरम तेल में दानवीर राजा कर्ण अपनी आहुति दिया करते थे और आहुति के बाद स्वयं देवी माता अमृत के छींटे देकर राजा कर्ण को जीवन प्रदान करती थीं। साथ ही देवी अक्षत वृक्ष से सवा मन सोना निकालकर राजा कर्ण को देती थीं। सोना लेकर दानवीर राजा कर्ण कर्णेश्वर महादेव मंदिर में भिक्षुओं को दान किया करते थे। दानवीर राजा कर्ण के नाम पर ही इस नगर का नाम कर्णपुरी तथा कालांतर में यह करनावद
नगर के नाम से प्रसिद्ध है। प्राचीन कर्णेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ गृह में एक प्राचीन शिवलिंग एवं शिव परिवार की मूर्ति विराजित है। पौराणिक मंदिर होने के बाद भी शासन-प्रशासन का ध्यान इस मंदिर की ओर नहीं है। नगरवासियों के सहयोग से ही यहां पर रखरखाव हो रहा है और आयोजन होते हैं।