सहज योग ध्यान द्वारा मन और अहंकार के लय से आत्मा प्रकाशित होती है
मोटे तौर पर यदि देखा जाये तो मानव शरीर जड़ और चेतन का सम्मिलित रूप है । मानव शरीर के इन दोनों भागों को स्थूल और सूक्ष्म शरीर में बांटा जा सकता है । स्थूल शरीर के अंतर्गत हाड़ – मांस और रस – रक्त से बनी यह मानव आकृति आती है, जो जड़ है। सुक्ष्म शरीर हमारे अंदर स्थित है, जो चेतन है और इसका ज्ञान योग विज्ञान से ही जाना जा सकता है। स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर के बिना कुछ भी नहीं है। चेतना के कारण ही स्थूल शरीर का अस्तित्व है । इस चेतना को ही आत्मा कहा जाता है ।
यह चेतना या आत्मा ही शरीर में विभिन्न भूमिकाएँ निभाती है, जिन्हें सम्मिलित रूप से मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार कहा जाता है । कहने को बस नाम अलग अलग है लेकिन इनके पीछे मूल रूप से कार्य करने वाली चेतना “आत्मा” ही है ।
मन और अहंकार दोनों का लय जब आत्मा में हो जाता है मन की इच्छा अहंकार का रुप नहीं लेती और अहंकार के कारण मन में अवांछित इच्छा भी जागृत नहीं होती।
सहज योग ध्यान पद्धति के अनुसार हमारा जो हृदय है वहीं आत्मा का वास है और परमपूज्य श्री माताजी के प्रवचन के अनुसार हमारी आत्मा की पीठ हमारे मस्तिष्क यानि हमारे बॅक आज्ञा चक्र पर स्थित है। आज्ञा चक्र हमारे कपाल पर स्थित है और बॅक आज्ञा चक्र कपाल के पीछे का हिस्सा है। इसीलिए जब हम सहज योग ध्यान पद्धति से ध्यान करते हैं तब हमारा हृदय यानि मन, और मस्तिष्क यानि हमारा दिमाग जहाँ से हमारे अंदर अहंकार उत्पन्न होता है, दोनों एक हो जाते हैं। और आत्मा के जागृत होते ही मन मस्तिष्क से जुड़ जाता है और यही है मन और अहंकार का लय। आज्ञा चक्र पर नियमित ध्यान करते ही मस्तिष्क और हृदय में सामंजस्य आ जाता है।
इस मन और मस्तिष्क की एकता को हमें पाना है तभी हमारा मन और अहंकार पर विजय हो पायेगा। जो हम दिमाग से सोचेंगे वही हमारे मन की भी सोच होगी। सहज योग के स्वचालित यंत्र के नियंत्रण अद्भुत है। इसका अनुभव सहज योग ध्यान से ही आ सकता है।
गीता में कहा गया है – “मन एवं मनुष्याणाँ कारणं बन्ध मोक्षयो” अर्थात मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण है । एक महत्वपूर्ण बात जो हमें हमेशा याद रखनी चाहिए और वह यह है कि – “हर आवश्यकता एक इच्छा होती है, किन्तु हर इच्छा एक आवश्यकता हो, यह जरुरी नहीं ।” जब मस्तिष्क आत्मा के अनुरूप होता है तो हममें किसी तरह की आकांक्षा कोई भी तरह का अविश्वास या भय नहीं रह जाता है।
मन हमारी सारी इन्द्रियों के विषयों को याद रख सकता है । जरूरत पड़ने पर उन विषयों का हमें अनुभव करा सकता है । मन ही हमें किसी विषय के प्रति प्रेरित करता है । इसीलिए मन को ग्यारहवीं इन्द्रिय भी कहा जाता है ।
जब किसी के मन में कोई भय आता है तो उस मन को समझाने का कार्य मस्तिष्क का है कि भय की कोई बात नहीं, यह बेकार की चीज है। आत्मा का प्रकाश हमारे हृदय को प्रकाशित करता रहता है। मस्तिष्क मन को समझाने का कार्य करता है और मन मस्तिष्क को किसी अनुचित इच्छा से परेशान नहीं करता है।
सहज योग को गहनता से समझने,जुड़ने और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।