सत्य को धारण करने के लिए शुद्ध इच्छा शक्ति व बल चाहिए
प. पू. श्री माताजी प्रणित सहजयोग एक सत्ययोग है। सत्य के बारे में कहा जाता है कि 'सत्यमेवजयते' अर्थात् सत्य की ही विजय होती है । उपनिषद् में वर्णित है, 'नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो ' न अयम आत्मा बलहिजेन लभ्यो' अर्थात् आत्मतत्व बलहीन व्यक्ति को नहीं प्राप्त होता। सत्य को धारण करने के लिये सूक्ष्म विचार, शुद्ध इच्छाशक्ति और बल चहिये। इसलिये सहजयोग धीरे-धीरे फैलता है। प. पू. श्री माताजी कहते हैं कि जीवंत-प्रक्रिया का विकास धीरे-धीरे होता है। उदाहरण के लिए, इस प्लास्टिक के फूल बड़ी संख्या में जल्द बना सकते हैं पर गुलाब या कोई भी अन्य फूल उगाने के लिए हमें धरती माता की शरण में जाना होगा। उस पेड़ या पौधे की, पूर्ण रक्षा कर उसका पोषण करना होगा तभी एक लम्बे समय के बाद हम उसके फल और फूल का आनंद ले सकेंगे। सहजयोग भी एक जीवंत प्रक्रिया है, जिस किसी व्यक्ति को यह योग प्राप्त होता है, उसका जीवन शांत, शीतल और सृजनशील होता है। इस योग के बारे में अन्य सभी को बताने की उमंग सदैव उसके मन में बनी रहती है। इसी के संदर्भ में हम आपको एक प्रसंग बताना चाहते हैं एक बार तीन दोस्त पार्क में बैंच पर बैठकर चर्चा कर रहे थे। उनमें से दो दोस्त धर्म और तत्वज्ञान पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। दोनों ही एक दूसरे के धर्म की आलोचना कर रहे थे। अंततोगत्वा हम दोनों में कौन श्रेष्ठ है इसका निर्णय करने के लिये वे तीसरे दोस्त के पास गये। तीसरा मित्र शांंत था। उन दोनों की चर्चा साक्षी भाव से देख रहा था । जब ये दो मित्र उसके पास निर्णय सुनने के लिये गये तो उसने कहा, जब मैं आपको निर्णय दूंगा तो आप मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे। फिर भी वे दोनों कहने लगे आप चिंतनशील हैं कृपया अपना निर्णय सुनाएं । तीसरे मित्र ने कहा कि आप दोनों ही सही नहीं हैं बल्कि मैं सही हूं। दोनों मित्र आश्चर्यचकित हो गये, तीसरे मित्र ने अत्यंत शान्ती से कहा, मै ही सही हूँ, मेरा चिंतन सत्य है यह मुझे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जो व्यक्ति सत्य जानता है, उस सत्य को धारण करता है, उस सत्य की राह पर अडिग रहता है वो उस सत्य को अन्य सामान्य जनों पर थोपता नहीं है क्योंकि सत्य तो स्वयं प्रकाशित होता है। जैसे कि सूरज को दिया दिखाने की आवश्यकता नहीं होती है। सत्य द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत सभी को स्वयं ही स्वीकार्य होते हैं। सहजयोग भी इसी सत्य पर आधारित ब्रह्म से एकाकारिता का मार्ग है। जो कि कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति का मार्ग है।सहज योग निशुल्क भी है और आसान भी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी हेतु टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 .