जहां-जहां पड़े भगवान कृष्ण के पांव, उन स्थानों को तीर्थस्थल के रूप में किया जाएगा विकसित : मुख्यमंत्री मोहन यादव
भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने निर्णय लिया है कि जहां-जहां भगवान कृष्ण के पांव पड़े हैं या जहां-जहां उन्होंने लीलाएं की हैं, उन स्थानों को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। मध्य प्रदेश का उज्जैन जहां उन्होंने 64 कलाएं और 14 विधाएं सीखी हैं, धार के पास अमझेरा जहां जानापाव में परशुराम को सुदर्शन चक्र दिया, उन सभी जगहों को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि यह भाजपा सरकार का निर्णय है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने घोषणा की है कि मध्यप्रदेश में भगवान कृष्ण ने जहां भी लीलाएं की हैं, जहां उन्होंने शिक्षा ग्रहण की है, उन सभी जगहों को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। बता दें कि भगवान ने उज्जैन में शिक्षा ग्रहण की थी और 18 दिनों में 18 पुराण, 4 दिन में 4 वेद, 6 दिन में 6 शास्त्र, 16 दिन में 16 कलाएं, 20 दिनों में गीता का ज्ञान प्राप्त किया था। यहीं पर उन्होंने मंगलनाथ रोड स्थित ऋषि सांदीपनि आश्रम, महर्षि सांदीपनि की तपस्थली में भाई बलराम और सुदामा के साथ शिक्षा ग्रहण की थी। यह वही स्थान है जहां भगवान ने गुरु दक्षिणा में गुरु पुत्र लौटाया था। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इन सभी जगहों को तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया है।
उज्जैन के मंगलनाथ रोड स्थित महर्षि सांदीपनि आश्रम शिप्रा नदी के गंगा घाट पर स्थित है। इस स्थान पर गोमती कुंड भी बना हुआ है। यहां पर गुरु संदीपनी के साथ ही कृष्ण, बलराम और सुदामा की मूर्तियां स्थापित हैं। यह आश्रम महर्षि सांदीपनि की तपस्थली है। यहां महर्षि ने घोर तपस्या की थी। इसी स्थान पर महर्षि सांदीपनि ने वेद-पुराण शास्त्र आदि की शिक्षा के लिए आश्रम का निर्माण करवाया था। दुनियाभर से संदीपनी आश्रम में श्रद्धालु आते हैं और श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली के रूप में इसका दर्शन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहीं पर 5,236 साल पहले भगवान श्रीकृष्ण का विद्यारंभ संस्कार हुआ था।
पुजारी रूपम व्यास बताते हैं कि महर्षि सांदीपनि भगवान श्रीकृष्ण के गुरु थे। मथुरा में कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण को वासुदेव और देवकी ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए अवंतिका नगरी उज्जैन में गुरु सांदीपनि के पास भेजा। भगवान कृष्ण और बलराम इनसे शिक्षा प्राप्त करने मथुरा से उज्जयिनी आए थे। महर्षि सांदीपनि ने ही भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। श्रीकृष्ण ने भाई बलराम के साथ 64 दिन शिक्षा ली थी। इस दौरान उन्होंने 14 विद्याएं और 64 कलाएं सीखी थीं। इस स्थान पर श्रीकृष्ण को गुरु सांदीपनि ने स्लेट पर तीन मंत्र लिखवाए थे। यहां यह परंपरा आज भी चल रही है।
उज्जैन की अवंतिका नगरी भगवान कृष्ण की शिक्षा स्थली ही नहीं ससुराल भी है। भगवान श्री कृष्ण ने यहाँ के राजा जयसेन की पुत्री मित्रवृन्दा से विवाह भी किया है। यहां भगवान कृष्ण का अनूठा मंदिर है, जहां श्री कृष्ण मित्रवृन्दा के साथ विराजमान है और जमाई के रूप में पूजे जाते हैं। कृष्ण वृंदा धाम मंदिर के पुजारी गिरीश गुरु बालक महाराज जानकारी देते हुए कहते हैं कि मित्रवृन्दा 5वीं पटरानी हैं, जिससे स्वयंवर में भगवान ने विवाह किया था। जन्माष्टमी के अवसर पर यहां भक्तों का ताँता लगा रहता है। बाद में श्रीकृष्ण यहां के जमाई बन गए। उज्जैन के राजा जयसिंह की पुत्री राजकुमारी मित्रवृंदा का स्वयंवर में श्रीकृष्ण से विवाह हुआ। वे भगवान श्रीकृष्ण की 5वीं पटरानी बनीं थीं। जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर में विशेष पूजा पाठ की जा रही है। इस अनूठे मंदिर की स्थापना संत गुरु बालक ने की है।
साभार लाइव हिंदुस्तान