"अब क्यों रुको"....

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कविता>>


चलो तुम चलो धीमे ही नहीं तेज ही तेज चलो,
कोई साथ दे या ना भी दे अकेले अकेले चलो,
जिंदगी है बहुत बड़ी नहीं,दिल फैलाकर चलो,
बेशक मौत सामने है खड़ी उससे निडर हो चलो,
चलो तुम चलो धीमे ही नहीं तेज ही तेज चलो, 
चाँद न छू सको तो क्या,चाँदनी के साथ चलो,
सूर्य के पास न जा सको,धूप से ऊर्जा 'ले' चलो,
चलो तुम चलो धीमे ही नहीं तेज ही तेज चलो,
नदियाँ बहती जा रही कहे भले ही कल कल
उसके कहने पर नहीं उसे देख देख कर चलो, 
चलो तुम चलो धीमे ही नहीं तेज ही तेज चलो,
हवा ये कहती,रुकोगे तो,फ़सोगे चक्रव्यूह में,
चलो तुम संग पवन के,आनंद आनंद में चलो, 
चलो तुम चलो धीमे ही नहीं तेज ही तेज चलोl
कोई साथ दे या ना भी दे अकेले अकेले चलो ll

विपिन जैन "श्रीजैन"
218, श्री मंगलनगर

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