पहले ठंड प्रचंड अब पड़ेगी भीषण गर्मी की मार
नई दिल्ली। भारत में इस साल वसंत ऋतु कम समय तक रहने के आसार हैं। इसके बाद भीषण गर्मी पड़ने की संभावना है। मौसम वैज्ञानिकों ने अनुमान में आशंका जताई है। उनके मुताबिक,अल नीनो प्रभाव के कारण वसंत के बाद से गर्मी का प्रकोप देखने को मिलेगा। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अप्रैल से जून के बीच 73 फीसदी संभावना है कि ईएनएसओ (अल नीनो और दक्षिणी दोलन) धीमा होगा। इसके तटस्थ रहने से जुलाई- सितंबर के आसपास ला नीना स्थितियों के विकसित होने की उम्मीद है। इससे मॉनसून अच्छा रहने के आसार हैं।
बता दें, भारत में अल नीनो के प्रभाव से अधिक गर्मी और कमजोर मॉनसून देखने को मिलता है। वहीं ला नीना से मजबूत मॉनसून, औसत से अधिक बारिश और सर्दियों पर असर पड़ता है।
निजी मौसम विभाग स्काईमेट वेदर ने कहा कि इस वक्त समुद्र और वायुमंडल की स्थितियां अल नीनो घटना के अनुरूप बनी हुई हैं। लेकिन यह भी संभावना है कि वायुमंडल संकेतक अनुमान से कहीं अधिक तेज गति से कमजोर हो रहा है। स्काईमेट ने कहा, संभावित ईएनएसओ पूर्वानुमान कुछ हद तक असामान्य पैटर्न दर्शा रहा है।
2024 की शुरुआत में अल नीनो मजबूती के साथ विकसित हुआ और मई-जून तक समाप्त होने के आसार हैं। इसके बाद फिर अचानक बढ़ेगा और वर्ष के अंत तक ला नीना के निर्माण का संकेत दे रहा है। स्काईमेट ने कहा, 2015 में भी मजबूती के साथ अल नीनो की घटना समाप्त हुई थी और 2016 में प्रचंड गर्मी देखने को मिली थी।
मौसम विभाग के अनुसार, जून तक अल नीनो की स्थिति तटस्थ (धीमा) होगा, लेकिन उससे पहले गर्मियों में इसका प्रभाव ज्यादा देखने को मिलेगा। हालांकि, मॉनसून सामान्य और पिछले साल से बेहतर रहने की उम्मीद है। स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने कहा कि इस साल गर्मी बहुत अधिक होगी और उसका असर भी तीव्र रहेगा। सिर्फ जून में ही ईएनएसओ के तटस्थ स्थिति होने की उम्मीद है। कुछ मॉडल ला नीना के सितंबर के आसपास विकसित होने का संकेत दे रहे हैं। इससे मॉनसून को मदद मिलेगा। लिहाजा, इस साल सामान्य मॉनसून रहने की उम्मीद है।
इस बार में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और जलवायु वैज्ञानिक के पूर्व सचिव एम राजीवन ने बताया कि मौजूदा मॉडल सामान्य से अधिक तापमान और अधिक लगातार गर्मी के बारे में संकेत दे रहे हैं। साथ ही प्री-मॉनसून सीजन के बारे में भी जानकारी मिल रही है। अभी तक का प्रारंभिक अनुमान बता रहा है कि मॉनसून पिछले साल से बेहतर हो सकता है।
यह संकेत अमेरिका के राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) के पूर्वानुमान के अनुरूप है, जिसने सितंबर-अक्तूबर अवधि में ला नीना स्थितियों के विकसित होने की 60 फीसदी से अधिक संभावना का अनुमान लगाया था।
आईएमडी के वैज्ञानिक डीएस पई के अनुसार, आमतौर पर अल नीनो से ला नीना में परिवर्तन संभव है। ऐसा पहले के वर्षों में भी देखा जा चुका है। लेकिन इस पर अभी तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं जता सकते। उनके मुताबिक, मार्च तक स्पष्ट पूर्वानुमान मिल सकता है।
हालांकि, अभी तक का अनुमान यह दिखा रहा है कि गर्मियों तक ईएनएसओ तटस्थ स्थिति में पहुंच जाएगा। पिछले वर्ष समाप्त हुआ ला नीना अपेक्षाकृत कमजोर था, लेकिन असामान्य रूप से लंबा था। यह 2020 में शुरू हुआ और 2023 में उत्तरी गोलार्ध में लगातार तीसरी बार सर्दियों में लौटा, जिससे यह एक दुर्लभ ट्रिपल-डिप घटना बन गई।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अधिक गर्मी के पीछे एक अन्य कारण अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बेहद कम बर्फ का होना भी संभव है। जनवरी के अंतिम सप्ताह से पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय है, जिसने उत्तर-पश्चिमी भारत में बारिश और बर्फबारी लाने में मदद की है। हालांकि, इसका स्तर बहुत ज्यादा नहीं रहा। बर्फ गिरने से उत्तर भारत के पहाड़ों के तापमान में कमी करने में मदद मिली है, जिसका असर मैदान पर भी फरवरी के मध्य तक देखने को मिलेगा।
साभार लाइव हिन्दुस्तान