हिंदुओं के पक्ष में 32 और प्रमाण, पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद मंदिर का इकलौता हिस्सा
वाराणसी। जिला जज की अदालत में दाखिल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट में बताया गया है कि ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद मंदिर का इकलौता हिस्सा है। ज्ञानवापी परिसर में मस्जिद निर्माण के लिए हिंदू मंदिर को तोड़कर उसके ढांचे का उपयोग किया गया, लेकिन पश्चिमी दीवार को बिना नुकसान पहुंचाए ही उपयोग में लिया गया है। यहां स्थित रहे मंदिर के तोड़ने के बाद और मस्जिद निर्माण से पहले पश्चिमी दीवार के कुछ हिस्सों को इसके नए उपयोग के अनुरूप संशोधित भी किया गया था।
पश्चिमी दीवार के उत्तरी और दक्षिणी कोनों को भी बदला गया है। दोनों कोनों पर सादे पत्थर का स्लैब पहले से मौजूद संरचना की ढली हुई दीवार की सतह के बिल्कुल विपरीत है। एएसआई ने पश्चिमी दीवार के एक-एक इंच की व्याख्या अपनी रिपोर्ट में की है और इसके साथ 32 और अहम प्रमाण हिंदू मंदिर के मिले हैं।
एएसआई की रिपोर्ट के वाल्यूम-1 में पश्चिमी दीवार का एक पूरा चैप्टर है। इसमें बताया गया है कि दक्षिणी प्रवेश द्वार की सीढ़ियों के ऊपर की छत पर भी राजमिस्त्री के निशान पाए गए हैं। उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम की ओर उत्तरी हॉल और दक्षिणी हॉल के अवरुद्ध प्रवेश द्वारों में भी बड़े संरचनात्मक परिवर्तन हुए हैं। दोनों प्रवेश द्वारों को पत्थर और गारे से बंद कर दिया गया।
प्रवेश द्वारों के अग्रभागों का वास्तुशिल्प डिजाइन भी पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है। रिपोर्ट में बताया गया कि पश्चिमी दीवार में ईंटों और चूने के मोर्टार का उपयोग करके बनाए गए मोरल आर्ट पहले से मौजूद संरचना के मूल वास्तुशिल्प पैटर्न के बिल्कुल विपरीत हैं। आंतरिक सतहों पर मोटे चूने का प्लास्टर किया गया है, जिससे पहले से मौजूद संरचना की मूल विशेषताओं को पहचानना मुश्किल हो गया है।
जगह की कमी और सुरक्षा जांच चौकी बनी बाधक
एएसआई ने रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पश्चिमी कक्ष की उत्तरी और दक्षिणी भुजा बनाता है। कक्ष की दक्षिणी भुजा को ग्रिल बाड़ से कुछ दूरी पहले तक पश्चिम की ओर खोजा जा सकता था। जगह की कमी और सुरक्षा जांच चौकी की मौजूदगी के कारण इसके पश्चिमी हिस्से का पता नहीं लगाया जा सका।
एएसआई की रिपोर्ट में ज्ञानवापी के 32 सच
परिसर में मौजूद रहे विशाल मंदिर में बड़ा केंद्रीय कक्ष था। इसका प्रवेश द्वार पश्चिम से था, जिसे पत्थर की चिनाई से बंद किया है।
केंद्रीय कक्ष के मुख्य प्रवेश द्वार को जानवरों व पक्षियों की नक्काशी और एक सजावटी तोरण से सजाया गया था।
प्रवेश द्वार के ललाट बिंब पर बनी नक्काशी को काटा गया है। कुछ हिस्से को पत्थर, ईंट और गारे से ढक दिया गया है।
तहखाने में उत्तर, दक्षिण और पश्चिम के तीन कक्षों के अवशेष को भी देखा जा सकता है पर कक्ष के अवशेष पूर्व दिशा और उससे भी आगे की ओर हैं। इसका विस्तार सुनिश्चित नहीं हो सका, क्योंकि पूर्व का क्षेत्र पत्थर के फर्श से ढका हुआ है।
ज्ञानवापी परिसर में मौजूद मूर्तियों के अवशेष और बड़ी संख्या में हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमा का संरक्षण है।
इमारत में पहले से मौजूद संरचना पर उकेरी गई जानवरों की आकृतियां थीं। 17वीं सदी की मस्जिद के लिए ये ठीक नहीं थे, इसलिए इन्हें हटा दिया गया, पर अवशेष हैं।
मस्जिद के विस्तार व स्तंभयुक्त बरामदे के निर्माण के लिए पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों जैसे खंभे, भित्तिस्तंभ आदि का उपयोग बहुत कम किया है। जिनका उपयोग किया है, उन्हें जरूरत के अनुसार बदला है।
इमारत की पश्चिमी दीवार (पहले से मौजूद रहे मंदिर का शेष भाग) पत्थरों से बनी है और पूरी तरह सुसज्जित की गई है।
उत्तर और दक्षिण हॉल के मेहराबदार प्रवेश द्वारों को अवरुद्ध कर दिया गया है और उन्हें हॉल में बदल दिया गया है। सर्वे के दौरान मिला शिलालेख, जो संस्कृत भाषा से मिलता-जुलता है।
उत्तर दिशा के प्रवेश द्वार पर छत की ओर जाने के लिए बनी सीढ़ियां आज भी प्रयोग में हैं। जबकि छत की ओर जाने वाले दक्षिण प्रवेश द्वार को पत्थर से बंद किया गया है।
किसी भी इमारत की कला व वास्तुकला न केवल उसकी तारीख बल्कि उसके स्वभाव का भी संकेत देती है। केंद्रीय कक्ष का कर्ण-रथ और प्रति-रथ पश्चिम दिशा के दोनों ओर दिखाई देता है।
सबसे महत्वपूर्ण चिह्न ‘स्वस्तिक’ है। एक अन्य बड़ा प्रतीक शिव का ‘त्रिशूल’ है। श्रीराम और शिव लिखी शिला।
साभार अमर उजाला