आपातकाल की 50वीं बरसी: लोकतंत्र पर लगा था सबसे बड़ा आघात – काला दिवस पर किशोर चौधरी से विशेष बातचीत
25 जून 1975... भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का वो दिन, जब संविधान के मूल अधिकारों को स्थगित कर देशभर में आपातकाल लागू कर दिया गया।
आज उस काले दिन की 50वीं बरसी है, और पूरे देश में इसे "काल दिवस" के रूप में याद किया जा रहा है।
इसी क्रम मेँ किशोर चौधरी ने जिन्होंने उस दौर के कड़वे अनुभव और लोकतांत्रिक मूल्यों की अहमियत पर प्रकाश डाला।
"आपातकाल नहीं, लोकतंत्र पर प्रहार किशोर चौधरी ने कहाँ
प्रेस की स्वतंत्रता को छीन लिया गया, हजारों निर्दोषों को बिना मुकदमे के जेलों में ठूंसा गया, और संविधान को ताक पर रख दिया गया।"
उन्होंने बताया कि उस समय विश्व हिंदू परिषद सहित अनेक संगठनों ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया था, और कई कार्यकर्ताओं को यातनाएं भी सहनी पड़ीं।
आज की पीढ़ी को जानना चाहिए यह इतिहास"
चौधरी का मानना है कि आज की युवा पीढ़ी को उस दौर की सच्चाई से अवगत कराना ज़रूरी,इसअवसर पर उन्होंने कहा कि काला दिवस केवल एक विरोध का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह देशवासियों को याद दिलाता है कि लोकतंत्र अगर जनता की जागरूकता से संरक्षित नहीं होगा, तो फिर वही इतिहास खुद को दोहरा सकता है।"
आपातकाल की यह 50वीं वर्षगांठ देश को सोचने पर मजबूर करती है – कि क्या हमने उस त्रासदी से सबक लिया है?
क्या आज भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उतनी ही सुरक्षित है जितनी होनी चाहिए?
श्री किशोर चौधरी जैसे व्यक्तित्वों की यह याद दिलाने वाली आवाज़ें लोकतंत्र को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।