सहज स्वभाव में स्थित व्यक्ति अजेय होता है : श्री माताजी
सहजयोग श्री माताजी निर्मला देवी जी द्वारा प्रतिस्थापित एक जीवंत वैज्ञानिक पद्धति है। सहजयोग कोई यौगिक अथवा शारीरिक क्रिया नहीं है वरन् सहजता से जीवन को जीना है। सहज रूप से जब हमारा योग अर्थात् जुड़ना परम शक्ति से हो जाता है तब हम सहजयोगी हो जाते हैं। सहजयोग कोई नई विचारधारा, संप्रदाय अथवा धर्म नहीं है यह तो संपूर्ण सृष्टि को चलायमान रखने वाला परमात्मा का यंत्र है। मनुष्य को परमशक्ति द्वारा बुद्धि प्रदान कर विचारों की स्वतंत्रता प्रदान की गई और इसी बुद्धि ने उसे असहज बना दिया। मानव जाति को इस भटकाव से बचाने के लिए अनेक अवतार, गुरु, व संत इस संसार में समय समय पर परमात्मा की इच्छा से अवतरित हुए और सभी ने सहजता की ही बात की व सहज जीवन को ही जिया। भारत में अनेकानेक ऐसे संत हुए हैं जो अपने गुणों के द्वारा देव तुल्य हो गए। ऐसे ही संत कबीर दास जी का नाम संतों की अग्रिम पंक्ति में लिया जाता है। जीवन की सहजता का वर्णन संत कबीर दास जी ने अपने दोहे में इस प्रकार किया है कि,
सहज सहज सब कोई कहै,सहज न चीन्हें कोय |
जिन सहजै विषया तजै, सहज कहावै सोय ||
अर्थात् सहज - सहज सब कहते हैं, परन्तु उसे समझते नहीं जिन्होंने सहजरूप से विषय - वासनाओं का परित्याग कर दिया है, उनकी निर्विषय- स्थिति ही सहज कहलाती है।
कबीर दास जी द्वारा वर्णित इसी सहजता की प्राप्ति सहजयोग में श्री माताजी के सानिध्य व कृपा में आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति के पश्चात् होती है। हम अपने सहज स्वभाव में स्थित रहने लगते हैं व समस्त दुश्चिंताओं से शारीरिक कष्टों से मुक्ति संभव हो जाती है। इस का वर्णन करते हुए श्री माताजी ने कहा है कि,
"जब आप भगवान के साम्राज्य में खड़े होते हैं खुशी के साम्राज्य में तो हर हाल में तुम राजा और रानी बनते हो। कोई भी आपको खरीद नहीं सकता या आप पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। आप सब कुछ जीत लेते हैं।" सहजयोग ध्यान का आनंद और अनगिनत लाभ लेने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं।

