सद्गुरु वही है जो मनुष्य को गरिमामय व तेजपूर्ण बना दे

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गुरु की महिमा हमारे शास्त्रों में ईश्वर से अधिक मानी गई है  क्योंकि ईश्वर मनुष्य को जन्म देता है, उसका निर्माण करता है व गुरु मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करता है वह उसे पुनर्जन्म प्रदान करता है। 
          सहजयोग संस्थापिका आदिशक्ति स्वरूपा श्री माताजी निर्मला देवी जी समस्त गुरुओं की भी गुरु है व उनके द्वारा स्थापित सहजयोग मानव को भवसागर के पार ले जाने का अत्यंत ही सुगम मार्ग है। श्री माताजी  के अनुसार, 
 "सदगुरु का स्थान अपने शरीर में है , जो हमारे शरीर में हमारी नाभि के चारों तरफ है ।... सद्गुरु का स्थान आपमें बहुत पहले से स्थापित है । गुरुतत्व अनादि है आपमें अदृश्य रूप से तीन मुख्य शक्तियाँ कार्यान्वित हैं - महाकाली , महासरस्वती एवं महालक्ष्मी की शक्ति । हमारा गुरुतत्व इन तीनों के समन्वय से बना है , यह गुरुतत्व हमारे अन्दर परमेश्वर ने बहुत ही नूतन स्वरूप में स्थापित किया है ।"( प पू श्री माताजी, 25/7/1979)
     ”गुरु शब्द का अर्थ है गुरुत्व । आपके गुरुपद की द्वितीय अवस्था में गुरुत्व की अभिव्यक्ति होना आवश्यक है । गुरुत्व तो आपके अन्दर है , ज्योंही आप साक्षी बनते हैं आपका गुरुत्व स्वतः ही प्रकट होने लगता है । यह क्रोध या गम्भीरता के रूप में नहीं प्रकट होता है , इसकी अभिव्यक्ति तो इस प्रकार होगी कि सभी कुछ अत्यन्त गरिमामय और तेजपूर्ण बन जाएगा।" ( प पू श्री माताजी, 19/7/1992)
" ..... जिस व्यक्ति को परमात्मा पर विश्वास है वह स्वयं परमात्मा है । गुरु को ब्रह्मचैतन्य कहते हैं । जब आपका विश्वास पूर्णतया स्थिर हो जाता है कि सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं और मैं उनका दूत हूँ और जब आपमें यह विश्वास पूर्णतया दृढ़ हो जाता है तब आप गुरुपद पर आरूढ़ हो जाते हैं ।" ( प पू श्री माताजी,19/7/1992)
इसीलिए श्री माताजी सहजयोग में कुंडलिनी जागरण से पूर्व आपको अपने स्वयं के गुरु होने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। जिससे आप सदैव आनंदमय व साक्षी स्वरूप रहते हुए परम चैतन्य से एकाकारिता को स्थापित कर सकें। आत्म ज्ञान के प्रकाश में कुंडलिनी शक्ति की उर्जा द्वारा प्रेममय व करुणामय तरीके से अनेकानेक साधकों को भवसागर से मुक्ति का मार्ग दिखा सकें। कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने हेतु टोल फ्री नम्बर  18002700800 पर सम्पर्क करें।

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