15 साल बाद NDA ने सीटों के लिहाज से दोहरा शतक लगाते हुए प्रचंड बहुमत किया हासिल
नई दिल्ली. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए एक बार फिर साबित कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जमीनी पकड़ आज भी अडिग है. 15 साल बाद NDA ने सीटों के लिहाज से दोहरा शतक (डबल सेंचुरी) लगाते हुए प्रचंड बहुमत हासिल किया है.
बिहार के चुनावी रण में इस बार एनडीए ने अभूतपूर्व जीत दर्ज की है. गठबंधन ने कुल 202 सीटें हासिल कीं, जो पिछले चुनाव की तुलना में 80 सीटों की बड़ी बढ़त है. वोट शेयर भी बढ़कर 47% पहुंच गया. BJP और JDU ने लगभग 101-101 सीटों में दावेदारी की थी. वहीं महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा है. राज्य में हुई ऐतिहासिक वोटिंग से बिहार के लोगों ने इस बार एनडीए को मेगा मंडेट देते हुए गर्दा उड़ा दिया.
बीजेपी बनी सबसे बड़ी पार्टी
बीजेपी ने इस बार शानदार प्रदर्शन करते हुए 89 सीटें जीतीं और पिछले चुनाव के मुकाबले अपने खाते में 15 सीटों की बढ़त दर्ज करते हुए राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. जेडीयू ने भी जोरदार वापसी की और 85 सीटों के साथ 42 सीटों की बढ़त हासिल की.
पहली बार एनडीए में शामिल होकर विधानसभा चुनाव लड़ी लोजपा (RV) ने 19 सीटें जीतीं, जबकि जीतनराम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम ने क्रमशः 5 और 4 सीटें अपने नाम कीं. इन पार्टियों का यह प्रदर्शन गठबंधन को निर्णायक बहुमत दिलाने में अहम रहा.
महागठबंधन की करारी हार
महागठबंधन के लिए यह चुनाव बड़ा झटका लेकर आया. गठबंधन कुल मिलाकर 35 सीटों पर सिमट गया, जो पिछली बार की तुलना में 79 सीटों की भारी गिरावट है. उनका वोट शेयर 39% रहा, लेकिन सीटों में इसका कोई लाभ नजर नहीं आया. आरजेडी ने मात्र 25 सीटें जीतीं, जो पिछले चुनाव से 50 सीटें कम हैं. 61 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस का प्रदर्शन भी बेहद कमजोर रहा और पार्टी इस बार 13 सीटों की गिरावट के साथ महज 6 सीटों पर सिमट गई. वहीं वाम दलों समेत अन्य के खाते में चार सीटें गई हैं.
डिप्टी सीएम का दावा ठोकने वाले मुकेश सहनी हारे
महागठबंधन में डिप्टी सीएम की दावेदारी ठोकने वाले मुकेश सहनी को भी करारी हार का सामना करना पड़ा है. सीट शेयरिंग के दौरान 60 सीटों पर दावेदारी पेश करने वाली उनकी पार्टी काफी मान-मनौबल के बाद 15 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन नतीजों में उनका खाता भी नहीं खुल सका. सहनी चुनाव प्रचार से दौरान लगातार तेजस्वी यादव के साथ नजर आ रहे थे. ऐसे में अब सवाल उठने लगा है कि क्या मुकेश सहनी महागठबंधन के लिए कमजोर कड़ी साबित हुए?
ओवैसी की पार्टी ने किया बढ़िया प्रदर्शन
असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने बिहार विधानसभा चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन करते हुए 5 सीटों पर जीत दर्ज की है. पार्टी ने इस बार 243 सीटों में से 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 24 सीटें मुस्लिम-बहुल सीमांचल क्षेत्र में आती हैं. यह वही इलाका है जहां ओवैसी की पार्टी का जनाधार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है. पार्टी ने अमौर, कोचाधामन, बायसी, जोकीहाट और बहादुरगंज सीट पर जबरदस्त जीत दर्ज की.
बसपा ने भी एक सीट पर जीत दर्ज की है.
जन सुराज पार्टी रही फ्लॉप
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जिसे ‘X फैक्टर’ माना जा रहा था, कोई बड़ा असर नहीं दिखा सकी. बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों के बावजूद पार्टी राज्य के राजनीतिक समीकरण नहीं बदल पाई. बड़े जोर-शोर से चुनावी मैदान में उतरी पीके की पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका.
BJP-JDU का वोट शेयर बढ़ा, महागठबंधन का घटा
बिहार में एनडीए की ऐतिहासिक जीत केवल सीटों तक सीमित नहीं रही, बल्कि वोट शेयर में भी यह बढ़त साफ दिखाई दी. बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 20.07% हो गया, जो 2020 में 19.46% था. इस बार बीजेपी ने 110 की बजाय केवल 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
इसी तरह जेडीयू ने इस चुनाव में सबसे उल्लेखनीय छलांग लगाई. पार्टी का वोट शेयर 15.39% से बढ़कर 19.26% हो गया. जेडीयू ने पिछली बार के मुकाबले कम यानी 115 के बजाय 101 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था.
वहीं महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी RJD ने इस बार 141 सीटों पर चुनाव लड़ा और 23% वोट शेयर हासिल किया, जो 2020 के 23.11% से थोड़ा कम है. हालांकि वोट शेयर लगभग स्थिर है, लेकिन सीटों में भारी गिरावट यह दर्शाती है कि वोटों का भूगोल इस बार उसके पक्ष में नहीं रहा.
कांग्रेस का वोट शेयर भी गिरकर 8.72% रह गया, जो 2020 में 9.5 के करीब था. पिछली बार उसने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि इस बार लड़ाई 61 सीटों तक सीमित रही. वाम दलों में सीपीआई(एमएल) लिबरेशन का वोट शेयर 3.16% से घटकर 2.84% हो गया.
असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने अकेले चुनाव लड़ते हुए करीब 2% वोट शेयर हासिल किया. यह 2020 के 1.24% की तुलना में बढ़ोतरी है, जिससे पता चलता है कि कुछ इलाकों में पार्टी का राजनीतिक असर बढ़ा है.
साभार आज तक

