श्रद्धा व समर्पण से ही आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है

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प्रत्येक संप्रदाय में हम आराध्य की आराधना हेतु अनेक साधन जुटाते हैं। कई बार ये साधन हमारे अहंकार का कारण बन जाते हैं। हम भ्रमवश ये भी भूल जाते हैं कि इन सभी साधनों का निर्माता वही परमात्मा है। आराधना में महत्व भाव, श्रद्धा व समर्पण का होता है। सहजयोग संस्थापिका श्री माताजी निर्मला देवी जी ने अपनी अमृतवाणी में वर्णित किया है कि,
"जब आप एक साक्षात्कारी आत्मा हैं और आप कुछ भी भेंट करते हैं, तो यह परमेश्वर को स्वीकार्य है, भले ही आप कुछ भी न कहें। लेकिन इससे आपको कोई लाभ मिलने के बारे में क्या? आत्मबोध के बाद जब आप ईश्वर को कुछ भी अर्पित करते हैं, तो वे स्वीकार करते हैं, क्योंकि यह एक साक्षात्कारी आत्मा से आ रहा है, इसलिए वे स्वीकार करते हैं। अब, ईश्वर को एक पुष्प देकर, हम उनके द्वारा आशीर्वाद कैसे प्राप्त करते हैं? अब यदि आप इसके बारे में कुछ नहीं कहते हैं, आप केवल एक पुष्प चढ़ाते हैं, तो आपको जीवन में स्वतः ही कई पुष्पों से पुरस्कृत किया जा सकता है। या हो सकता है कि आप जो भी भौतिक चीजें अर्पित करते हैं, आप भौतिक रूप से आशीर्वादित हो सकते हैं। 
    फिर एक सूक्ष्म तरीके से यदि आप कुछ कहते हैं, जैसा कि आप किसी को यह विनम्र तरीके से देने के लिए कहते हैं कि “यदि आप इसे स्वीकार करेंगे तो मुझे खुशी होगी,” शायद इसके और भी सूक्ष्म परिणाम होंगे, जो बहुत व्यापक हो सकते हैं, शायद बहुत गहरे हो सकते हैं। अब, आप कुछ प्रतीकात्मक करते हैं जो की सार है, किसी चीज का सिद्धांत है। क्योंकि अगर आपने सिद्धांत से संबंध किया है, तो आपने वास्तव में समग्र को हासिल किया है। क्योंकि परिपूर्ण आध्यात्मिक आशीर्वाद ही संपूर्ण क्षेमकुशल व हितकारी परमसुख है।" (२२ अगस्त १९८२)
सहजयोग ध्यान के माध्यम से अपने आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति हेतु आप जानकारी निम्न साधनों से पा सकते हैं। टोल फ्री नं – 1800 2700 800 बेवसाइट - sahajayoga.org.in

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