अबोध आनंद को प्राप्त करना ही सहजयोग है
अबोधिता या मासूमियत एक ऐसा भाव या अवस्था है जो व्यक्ति को देवतुल्य बना देती है। अबोधिता को यदि समझना है तो हमें उस बचपन की ओर देखना चाहिए जिसका परिचय दुनिया के मायावी संसार से नहीं हुआ है। सहजयोग में श्री गणेश इस अबोधिता के प्रणेता होते हैं वे ही इसकी रक्षा करते हैं। इसी अबोधिता के कारण ही सहजयोगी चिर आनंद में रहते हैं। जो बालसुलभ मस्ती को नहीं पा सकता उसकी ईश्वर से एकाकारिता नहीं हो सकती। वास्तव में आनंद ही सहजयोग है। सहजयोग संस्थापिका आदिशक्ति श्री माताजी ने इसी आनंद की व्याख्या इस प्रकार की है कि,
"मासूमियत वह तरीका है जिससे आप वास्तव में दूसरों को मज़ा देते हैं, इसका मज़ेदार हिस्सा बनते हैं। मज़ा तो मासूमियत से ही पैदा होता है. और मासूमियत ही एकमात्र तरीका है जिससे आप वास्तव में आनंद भी प्राप्त कर सकते हैं।
वह आनन्द और कुछ नहीं बल्कि खिलना है। यह किसी को चिढ़ाता नहीं है, किसी को चोट नहीं पहुंचाता है, किसी को परेशान नहीं करता है, लेकिन बस खिलता है, पूरी बात, सुगंध में। यह परमात्मा की तरकीब है। इसमें उससे भी अधिक कुछ ऊंचा है, कि यदि आप निर्दोष ( अबोध ) हैं, तो आप वास्तव में आनंद का अनुभव कर सकते हैं। तो, एक निर्दोष व्यक्ति ही किसी ऐसी चीज का आनंद महसूस कर सकता है जिसे एक बहुत ही गंभीर और एक बहुत ही तर्कसंगत व्यक्ति कभी नहीं देख सकता है। एक निर्दोष व्यक्ति किसी बात पर जोर से हंस सकता है, दूसरे लोगों के लिए यह कुछ मजाकिया नहीं भी हो सकता है। तो, आनंद -सृजन कोई संदेहास्पद चीज़ नहीं है, यह एक बहुत ही सीधा, सरल, एक सहज खिलना है।
श्री माताजी निर्मला देवी, (22 अगस्त 1982)
जीवन के इसी आनंद को प्राप्त करना सहजयोग का उद्देश्य है। आनंद की यह अवस्था आपको वर्तमान में स्थापित कर भयमुक्त जीवन प्रदान करती है। सहजयोग ध्यान के इस निरानंद को प्राप्त करने हेतु नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।