हंसा चक्र की जागृति मंगलमयता की अभिव्यक्ति का स्रोत है
हम जानते हैं कि हमारे सूक्ष्म शरीर में सात मुख्य चक्र होते हैं परन्तु इनके अतिरिक्त अन्य चक्र भी हैं जो हमें संतुलन प्रदान करने में सहायक होते हैं। इन्हीं में से एक है हंसा चक्र।
हंसा चक्र दोनों भृकुटियों के मध्य में स्थित है। ये दोनों आँखों बाईं तथा दाईं ओर का द्योतक हैं। ...... कुण्डलिनी को विराट से सम्पर्क स्थापित करने के लिये हंसा चक्र से गुज़रना पड़ता है। हंसा चक्र पर ईड़ा और पिंगला के कुछ भाग की अभिव्यक्ति होती है। इसका अर्थ ये हुआ कि ईड़ा और पिंगला की अभिव्यक्ति हंसा चक्र के माध्यम से होती है। तो हंसा चक्र वह चक्र है जो यद्यपि आज्ञा चक्र तक नहीं गया फिर भी जिसने इन दोनों नाड़ियों के कुछ सूत्र या कुछ भाग थामे हुए हैं और ये सूत्र नाक की ओर प्रवाहित होने लगते हैं, आपकी आँखों से, मुँह से और मस्तिष्क के माध्यम से इनकी अभिव्यक्ति होने लगती है। आप जानते हैं कि विशुद्धि चक्र की सोलह पंखुड़ियों हैं जो आँख, नाक, जिह्वा, गला और दाँतों की देखभाल करती हैं परन्तु इनकी अभिव्यक्ति का काम हंसा चक्र के माध्यम से होता है।
हंसा चक्र जाग्रत होने पर सद्- सद् विवेक विकसित होता है। संस्कृत का एक सुन्दर श्लोक है कि हंस और बगुला दोनो श्वेत पक्षी हैं, तो दोनो में अन्तर क्या है? यदि दूध में पानी मिला हो तो हंस उसमें से दूध पी जाएगा और पानी को छोड़ देगा परन्तु बगुले को दूध तथा पानी अलग करने का विवेक नहीं है। हंसा चक्र हमारी चेतना में मंगलमयता की अभिव्यक्ति का केन्द्र बिन्दु है। इसका अभिप्राय यह है कि हंसा चक्र के जाग्रत स्थिति में होने पर हम तुरन्त जान जाते हैं कि शुभ क्या है और क्या अशुभ है। हमें दैवी विवेक प्राप्त हो जाता है।
आत्मा के प्रकाश की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति इसी हंसा चक्र के द्वारा होती है। हंसा चक्र में चमकने वाला आपकी आत्मा का प्रकाश आपको विवेक प्रदान करता है तो आपमें स्वतः ही अनुभव की बुद्धि आ जाती है और आप जान जाते हैं कि ठीक रास्ता कौन सा है। एक बार जब यह बुद्धि पारदर्शी हो जाती है और आप इसमें से हर चीज़ स्पष्ट देखने लगते हैं तो आपका मस्तिष्क भी पूर्णतया स्वच्छ हो जाता है।
आँखें तथा कान अब पूरे वातावरण में ऐसी अनुक्रिया प्रसारित करने लगते हैं कि आप केवल सुन्दर को ही ग्रहण करते हैं। एक बार जब आप ऐसा करना सीख जाते हैं तब आप कहते हैं हम आनन्द सागर में तैर रहे हैं। सागर तो वही है, पर अब आप उसके अन्दर की अमृत की सुन्दर बूँदों को प्राप्त कर लेते हैं और अन्य लोग डूबने से डरते रहते हैं। यही संसार है। इसी कारण लोग कहते हैं कि यह माया है, पर विवेक बुद्धि में माया नहीं रह जाती।
हंसा चक्र के कार्यान्वित होने पर ही उत्थान संभव है। जब तक आपका हंसा चक्र कार्यान्वित नहीं होता, तब तक आपका आनन्द प्राप्त करना सम्भव नहीं। इस विश्वास के साथ कि इन बन्धनों को त्यागने में ही हमारा हित है, इनसे यदि हम छुटकारा पा लें तो आज्ञा चक्र खुल जाता है।
हंसा चक्र का महानतम कार्य ... यह है कि यह आपके पूर्व कर्मफल को समाप्त करता है। पूर्व-कृत अपराध फल के भय से मुक्ति देता है । कीचड़ में जन्मे कमल की तरह आप सुन्दर होंगे और पूरे विश्व में सुन्दर सुगन्ध बिखरेंगे जब आपका हंसा चक्र जाग्रत हो जाएगा। ('सहज ब्रह्मविद्या' पुस्तक से साभार)
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