बाजीराव पेशवा : अदम्य साहस और राष्ट्रभक्ति की प्रतीक जयंती
✍️ रणजीत टाइम्स संपादकीय ✍️
भारत के इतिहास में जब भी वीरता और रणनीति का स्मरण किया जाएगा, पेशवा बाजीराव प्रथम का नाम गर्व से लिया जाएगा।
18 अगस्त 1700 को जन्मे बाजीराव ने मात्र 20 वर्ष की आयु में मराठा साम्राज्य के पेशवा बनकर ऐसी गाथाएँ लिखीं, जिन पर हर भारतीय को गर्व है।
अद्वितीय विजयपथ
बाजीराव ने अपने जीवनकाल में 41 युद्ध लड़े और एक भी युद्ध नहीं हारे।
उनकी नीति तेज़ घुड़सवारी, अचानक आक्रमण और सैनिकों में उत्साह भरने की क्षमता पर आधारित थी।
उन्होंने दक्षिण से लेकर दिल्ली तक मराठा साम्राज्य का परचम फहराया और मुग़ल सत्ता की जड़ें हिला दीं।
दूरदर्शी नेतृत्व
बाजीराव केवल योद्धा नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी सेनापति और कुशल प्रशासक भी थे।
उनका सपना था – हिंदवी स्वराज्य।
उन्होंने अपने सैनिकों को परिवार समझा और हर संकट में उनके साथ खड़े रहे। यही कारण था कि उनकी सेना उन्हें केवल पेशवा नहीं, बल्कि प्रेरणा मानती थी।
आज के संदर्भ में प्रेरणा
आज जब हम बाजीराव पेशवा की जयंती मना रहे हैं, तब यह स्मरण करना आवश्यक है कि उनका जीवन हमें क्या सिखाता है।
कठिन परिस्थितियों में साहस और तेज़ निर्णय ही सफलता की कुंजी हैं।
एकजुट होकर काम करने से असंभव भी संभव हो जाता है।
राष्ट्रहित सर्वोपरि है, निजी स्वार्थ नहीं।
निष्कर्ष
बाजीराव पेशवा का जीवन एक अमर गाथा है।
उनकी जयंती पर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं और संकल्प लेते हैं कि हम भी उनके आदर्शों से प्रेरणा लेकर राष्ट्रनिर्माण के मार्ग पर अग्रसर होंगे।
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