बैलपोला: मेहनत और ममता का पर्व

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संपादकीय 

भारत की धरती पर खेती केवल अन्न उपजाने का साधन नहीं, बल्कि जीवन जीने की संस्कृति है। इस संस्कृति में किसान और उसके बैल का रिश्ता सबसे खास है। बैलपोला का पर्व इसी रिश्ते की पहचान है – जहाँ किसान अपने बैल को न सिर्फ़ साथी मानता है बल्कि परिवार का सदस्य समझकर उसका सम्मान करता है।

गाँव की गलियों में जब रंग-बिरंगे कपड़ों से सजे, घंटियों की झंकार से गूँजते बैल चलते हैं तो दृश्य केवल उत्सव का नहीं होता, यह हमें याद दिलाता है कि धरती की सुनहरी फसल इनकी अथक मेहनत के बिना संभव नहीं। बैल किसान की खुशहाली का आधार हैं और यही कारण है कि बैलपोला पर किसान उनका आभार व्यक्त करता है।

आज जब मशीनें खेती के साधन बन रही हैं, तब भी बैल का महत्व कम नहीं हुआ है। छोटे किसानों के लिए बैल अब भी खेत का सहारा हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि आधुनिकता अपनाते हुए भी परंपरा और प्रकृति से जुड़ाव बनाए रखना कितना ज़रूरी है।

बैलपोला केवल बैलों की पूजा का दिन नहीं है, यह दिन हमें श्रम, सहयोग और कृतज्ञता का महत्व समझाता है। जिस समाज में मेहनतकशों का सम्मान होगा, वही समाज सच्चे अर्थों में समृद्ध होगा।

???? बैलपोला की हार्दिक शुभकामनाएँ ????

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