खुशी और गम से परे परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश के अधिकारी बनें सहजयोग से

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हम अपने जीवन में प्रमुख रूप से तीन तरह के मनुष्यों को देखते हैं। पहले वे जो हमेशा दूसरों की शिकायत ही करते रहते हैं वे अहंकार से ग्रसित होते हैं और दूसरों को दबाने का प्रयास करते हैं।   दूसरे  प्रकार के लोग मानो हमेशा दुखी रहने के लिए ही जीवित रहते हैं, कोई भी चीज उन्हें खुश नहीं कर सकती है।  तीसरे वे लोग होते हैं जो अनुकूल या प्रतिकूल हर स्थिति में प्रसन्न रहते हैं, जो कुछ भी उन्हें उपलब्ध होता है, उसी में संतुष्ट रहते हैं। ‌ 
इस संसार को इन तीनों परिस्थितियों ने ही ढक रखा है और लोग उन्हीं परिस्थितियों के चश्मे से संसार और संसार के रचयिता को देखा भी करते हैं। तीसरी तरह के जो लोग हैं वे सहज योगियों जैसे हैं, हर हाल में खुश। 
वास्तव में यह संसार निराकार परमात्मा का ही साकार रूप है। यह दुनिया  अदृश्य सत्ता की काया और अबोल का बोल है। जैसे नदी को पार करने के लिए जल में उतरना पड़ता है। वैसे ही सांसारिक परिस्थितियों की सरिता को पार करने के लिए उसमें उतरना पड़ता है और पार उतरने की युक्ति जानने के लिए गुरु के पास जाना पड़ता है। गुरु से ही परिस्थितियों की ओट में छिपी वास्तविकता का बोध होता है। साकार समस्याओं के मूल में अवस्थित अरूप परमात्मा का साक्षात्कार होता है। जो मनुष्य गुरु कृपा से प्राप्त युक्ति का इस्तेमाल करता है, वह इस किनारे से उस किनारे तक की यात्रा को सुरक्षित रूप से पार करने में सफल होता है। भवसागर  को पार करने का आनंद तैराक योगी को ही मिलता है।   नाव में बैठे सामान्य मनुष्य भी श्रद्धा और भक्ति मार्ग का सहारा ले सांसारिक समस्याओं के भोगते होते हुए भी उसे पार करने में सफल हो जाते हैं।   
पर, जीवन का आनंद कहीं गुम हो जाता है।  यदि ऐसा हुआ तो जीवन का उद्देश्य ही अधूरा रह जायेगा।   हमारे जीने का अर्थ ही नहीं रह जायेगा।  सहज योग माध्यम से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर हम जीने का अर्थ पाते हैं।  भक्ति और उपासना से ज्यादा महत्वपूर्ण है अपने को पाना।  जीवन तभी सफल है  ना जब हम अपने परमपिता परमेश्वर से जुडते हैं। 
29 अक्टूबर 2000 के अपने एक प्रवचन में श्री माताजी ने हमें समझाने का प्रयास किया है, 
"श्रद्धा का अर्थ केवल प्रार्थना करना नहीं है, यह मात्र विश्वास करना ही नहीं है, अपितु श्रद्धा वह है, जिसके कारण आप अपनी भक्ति व समर्पण से मिली उपलब्धियों का आनंद अपने हृदय में लेते हैं। इसे ही श्रद्धा कहना चाहिए।"
इस अनुठी ध्यान पद्धति से जुडने हेतु व आत्मसाक्षात्कार  को प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।

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