भाई दूज: भाई-बहन के अमिट रिश्ते का प्रतीक

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भाई दूज का पर्व भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के पवित्र और अटूट बंधन का प्रतीक माना जाता है। यह दिवाली के ठीक बाद मनाया जाता है और प्राचीन कथाओं से जुड़ी अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को समेटे हुए है। इस विशेष दिन पर बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि की कामना करती हैं, और भाई उनकी सुरक्षा और खुशहाली का वचन देते हैं।

ऐतिहासिक उत्पत्ति

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भाई दूज का आरंभ यमराज और उनकी बहन यमुनाजी की कथा से हुआ माना जाता है। कथाओं के अनुसार, यमराज ने अपनी बहन यमुनाजी का स्नेह और सेवा देखकर उनसे हर साल मिलने का वचन दिया था। तब से, यह दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है, जब बहनें अपने भाइयों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं।

श्रीकृष्ण और सुभद्रा की कथा भी भाई दूज से जुड़ी है, जहां नरकासुर का वध करने के बाद श्रीकृष्ण ने अपनी बहन से तिलक करवाया, और यह परंपरा बन गई।

आज के समय में भाई दूज का महत्व

आज भी भाई दूज का त्योहार पूरे भारत में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाइयों को तिलक लगाकर उनके सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, और भाई उनकी रक्षा का वचन देते हैं। यह पर्व न केवल रिश्तों को गहराई देता है, बल्कि परिवारों में प्रेम और एकता का संदेश भी फैलाता है।

देश और विदेश में भारतीय समुदाय इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, जिससे भाई-बहन का यह रिश्ता सदैव अमर बना रहता है।

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