जैन समाज की बेटी बनी प्रेरणा: दिगंबर और श्वेतांबर पंथ को जोड़ती हुई उत्तम तपस्या

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राजेश धाकड़

इंदौर,जैन समाज मुख्य रूप से दो प्रमुख पंथों – दिगंबर और श्वेतांबर – में बंटा हुआ है। लेकिन धर्म की सच्ची भावना सदैव यह रही है कि तप, साधना और आस्था किसी भी विभाजन से परे जाकर आत्मा के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करें। इसी भाव को साकार कर रही हैं पूनम जैन।

पूनम जैन, जो मूलतः दिगंबर जैन समाज की बेटी हैं,पिता श्रीपाल जी जैन की सुपुत्री, आज श्वेतांबर जैन समाज की बहु हैं पति अंश जी जैन की धर्मपत्नी  दोनों ही पंथों की परंपराओं को आत्मसात करते हुए उन्होंने पर्यूषण पर्व पर विशेष तपस्या का संकल्प लिया है।

आस्था और दृढ़ निश्चय के साथ पूनम जैन ने निर्जला उपवास की कठिन साधना आरंभ की। अब तक उन्होंने लगातार 13 उपवास पूर्ण कर लिए हैं और उनके संकल्प अनुसार यह संख्या 16 उपवास तक पहुँचेगी। उनकी साधना केवल व्यक्तिगत तपस्या ही नहीं, बल्कि जैन समाज के लिए एकता और समर्पण का प्रेरक उदाहरण भी है।

जैन समाज के आचार्यों और समाजजनों ने पूनम जैन के इस संकल्प और तपस्या की सराहना करते हुए इसे धर्म की सच्ची साधना बताया है। पर्यूषण पर्व पर किया गया यह कठिन व्रत निश्चित ही उनकी आत्मशुद्धि और मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होगा।

उत्तम तपस्या और त्याग से ओतप्रोत यह प्रेरणादायी कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश देता है कि,"धर्म विभाजन नहीं, बल्कि आत्मा की एकता और शुद्धि का मार्ग है।"

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