धन त्रयोदशी - उत्तम स्वास्थ्य की आराधना का पर्व

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निरोगी काया के स्वामी श्री धन्वंतरि को जागृत करें सहज योग से। 


भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है कहते हैं,  अच्छा स्वास्थ्य  हो तो धन स्वयंमेव आ जायेगा। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है। 
   शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं।   इस घोर कलियुग में प्रेम तत्व ही वो रसायन है जो मनुष्य के मन, बुद्धि और अहंकार  को सिक्त करके निष्काम और उत्तम कार्य की प्रेरणा  देकर उसे त्याग और तपस्या के योग्य बनाता है।  जब हम इन दुर्गुणों को त्याग देते हैं तब हममें अमृतमयी प्रेम प्रस्थापित होता है।  संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।  
मान्यता है कि इस दिन सोना, चांदी या कोई अन्य मूल्यवान वस्तु खरीदने से सौभाग्य, सफलता और बुरी नज़र से सुरक्षा मिलती है। इस दिन लोग भगवान कुबेर और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और कुछ नया खरीदते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी दूध के सागर से निकली थीं।
यहाँ यह स्पष्ट है धनतेरस निश्चित रुप से धन्वंतरि के साथ साथ धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है।  सिर्फ धन की चाहत रख धनतेरस मनाना सार्थक नहीं क्योंकि धन कई बार अनैतिकता की ओर खींचता है।  सहज योग में संतुष्ट सहजी साधक सिर्फ निरोगी रहने की आकांक्षा से धन्वंतरि की साधना अपने अंतर में करते हैं। 
सहज योग में धनवन्तरि का मंत्र लेते हुये साधक अपने सहस्त्रार चक्र पर ध्यान करते हैं। परमपूज्य श्री माताजी साक्षात धन्वंतरि स्वरुप हैं।  असाध्य रोगों का इलाज सहज योग माध्यम से संभव होता है। हमारे अंदर से प्रवाहित चैतन्य हमारे चक्रों को स्वस्थ रखता है और हर सहजी निरोगी काया का मालिक होता है।  बशर्ते वह नियमित ध्यान धारणा करता हो।   धनतेरस दीपावली का प्रथम दिन है, तब से ही अपने घरों में दीप जलाना शुरु करते हैं।  दीपक हमारे हृदय के अंधकार को दूर कर उजाला प्रज्ज्वलित करे तभी धनतेरस सार्थक होगा।  हृदय के विशाल होते ही हमारा शरीर बीमारी रहित हो जाता है। प्रेम से अपने अंतर को पोषित करने की विधि सहज योग के माध्यम से सीखी जा सकती है। वास्तव  में प्रेम का दिया ही प्रज्ज्वलित होना चाहिए अंतस में ताकि हम अपने साथ साथ अन्यों को भी निरोगी रहने को प्रेरित कर सकें। हमारे अंदर दीप जलेगा तोर हम अन्यों दीपों को भी रौशनी दे पायेंगे।   अपने अंदर धन्वंतरि को जागृत करने हेतु सहज योग से जुड़ना सुखकर होगा। 
सहज योग निशुल्क भी है और आसान भी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 अथवा यूट्यूब चैनल लर्निंग सहजयोगा से प्राप्त कर सकते हैं

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