सीता पर संवाद : नवरात्र पर जनक सीता जानकी की आई याद

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जनक सुता जग जननी जानकी 
अतिशय प्रिय करुणा निधान की 
जाके जुग पद कमल मनाऊँ
 तासु कृपा निर्मल मति पाऊँ 

“स्त्री प्रणेता जनक नंदनी सीता” संगोष्ठी का दिल्ली के मालवीय भवन में हुआ आयोजन   । 

नई दिल्ली।  गुरुवार को सीता चरितार्थ पर चर्चा एवं संगोष्ठी का आयोजन हुआ  । यह कार्यक्रम जानकी रिसर्च काउंसिल द्वारा दिल्ली के मालवीय भवन में काशी के जाने माने संत जिन्होंने गंगा बचाओ आंदोलन के तहत नमामी गंगे की लड़ाई लड़ने वाले  और संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती की अध्यक्षता में संपन्न हुआ । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर रहे और भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री एस .पी. सिंह बघेल ने उस कार्यक्रम के विशेष अतिथि के तौर ओर शिरकत की । कार्यक्रम में मुख्य वक्ता मशहूर कथावाचक साध्वी समाहित देवी और विश्व मांगल्या सभा की अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री पूजा जी देशमुख रही । “स्त्री प्रणेता जनक नंदनी सीता “ नाम से आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य आज के युग  में त्रेता युग सीता की समाज और परिवार कितनी जरूरत है इस पर आधारित था। आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना की स्वरूप माता जानकी के हर पहलू पर समर्पित इस संगोष्ठी “परिवार से समाज और फिर राष्ट्र निर्माण में  सीता स्वरूपा स्त्री भूमिका की कितनी जरूरत है इसको लेकर था ।

 

दोपहर 4 बजे दीप प्रजापालन और सिया-वर रामचंद्र की जयघोषों के साथ शुरू हुई  और  शिवानी तिवारी द्वारा देव-वंदना की प्रस्तुति  के  साथ कार्यक्रम का आधिकारिक तौर पर 
शुभारंभ हुआ  । 

कार्यक्रम में संत समिति के धर्म विभाग के अखिल भारतीय अध्यक्ष आचार्य शुभेष श्रमण ने  विषय प्रस्तुति दी  और विश्व मांगल्य सभा की सह संगठन मंत्री पूजा जी  देशमुख ने अपने उद्बोधन में सीता के व्यक्तित्व और उपलब्धियों की समकालीन प्रासंगिकता को रेखांकित किया  । वहीं  मुख्य वक्ता साध्वी समाहिता ने स्त्री चेतना में वीरांगना रूपी निर्भीक ,संस्कारित समर , परिवार और राष्ट्र की संग्राहक सीता को समाहित करने की बात कही ।  

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर ने इस भागती दौड़ती आधुनिक युग में संघ शताब्दी वर्ष में आरएसएस के पंच परिवर्तन केंद्रित विषय में से एक परिवार प्रबोधन पर केंद्रित अपने उद्बोधन में परिवार के आदर्शों में माता सीता के मूल्यों को समाहित करने की बात कही ।  उन्होंने भारत के बच्चों में भारतीयता को बचाए रखने के लिए रोजमर्रा की ज़िंदगी में क्षेत्रीय भाषाओं  खास  कर हिन्दी भाषा को बचाए रखने पर बाल दिया । उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति  संस्कारों की शिक्षा देना अत्यंत अवश्य हो गया है । परिवार में रामायण और वैदिक ग्रंथो का अध्ययन करवाना से ही बच्चों को संस्कारित किया जा सकता है । आगामी पीढ़ी को संस्कारित करने के लिए सबको प्रयास करना चाहिए । एक कहानी बताते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी बच्चा सपने अपनी भाषा में देखता गई इसलिए अगर आप परिवार में बोलचाल की भाषा अंग्रेजी रखेंगे तो बच्चों के भविष्य का सपना कहीं ना कहीं दिशाहीन हो जाएगा  और द्वंद में जिएगा । बच्चा वो अपने  सपनों को यथार्थ में लाने में मुश्किलों का सामना कर सकता है । सीता से संयमित संवाद और अनुशासन सीखने की जरूरत है । 

विशेष अतिथि केंद्रीय मंत्री एस.पी. सिंह बघेल सीता  से  शक्ति  तक और स्त्री सम्मान और राष्ट्र निर्माण पर केंद्रित विषय पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम स्वागत योग्य है । शायद ये पहला मौका है जब मैं माता सीता पर इस तरह की संगोष्ठी में शामिल हो रहा हूँ । समाज में भारतीयता बचाए रखने और युवा वर्ग को देशवासी बनने केव्यदेश्य से इस तरह के कार्यक्रम होते रहने चाहिए । 

माता जनक नंदनी जानकी के जीवन दर्शन पर आयोजित इस  संगोष्ठी में जहाँ माँ जानकी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई वहीं सभी वक्ताओं ने भारतीय परिवार , समाज और संस्कृति में पाश्चात्य सभ्यता का युवाओं पर बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई और इसके दूरगामी परिणाम को भारत और भारत की संस्कृति के लिए घातक माना । 

राष्ट्रीय महामंत्री अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि वैदिक काल से ही भारत की स्त्रियां  वैचारिक रूप से कितनी स्वतंत्र थीं इसको हम माता सीता के चरित्र में साफ़ देश सकते हैं । हमें ऐसा लगता कि रामायण राम केंद्रित है लेकिन वस्तव  आमरण की पूरी गाथा सीता केंद्रित है । जिसमें राम अगर शरीर है तो सीता आत्मा और अगर आत्मा निकल जाए तो शरीर  का कोई मूल्य नहीं रह जाता  है । पश्चिम में स्त्रियों को अभी हाल में वोटिंग राइट मिले हैं । मगर भारत की स्त्रियां वैदिक काल  से ही हर निर्णय में शामिल रही गईं । इस बदलते परिवेश में हमें आज की अपनी सीताओं को बचाना अगर अभी हम सचेत नहीं होंगे तो आने वाले समय कालनेमि ना जाने कितने रावण आ खेड़े होंगे । 
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने  एक प्रसंग के माध्यम से बताया बहरुपीयों से सावधान रहना चाहिए। 

सभी वक्ताओं ने माता जानकी के जीवन दर्शन से आजके सन्दर्भ में सीखने की आवश्यकता पर बल  दिया । सामाजिक राजनीतिक धार्मिक सभी पक्षों में सर्तकता की आवश्यकता है माता जानकी  ने रावण के भेष रूप बदलने के कारण ही उनका हरन हुआ आज भी समाज को ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए । 

कार्यक्रम में अखिल भारतीय संत समिति के अलख नाथ बाल योगी जी महाराज , नरेंद्र ठाकुर  , सह प्रचार प्रमुख राष्ट्रीय सयंव सेवक संघ , केंद्रीय राज्य मंत्री एस पी सिंह बघेल ,साध्वी समाहितादेवी  , संजय गोतम, योगेश अग्रवाल एवं अन्य गण मान्य उपस्थित रहे ।कार्यक्रम की संयोजिका अनीता चौधरी ने  मंच संचालन किया ।

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