लक्ष्मीतत्व की जागृति का महापर्व है दीपावली महोत्सव
दीपावली यूं तो पांच दिन का महापर्व होता है परंतु इस पर्व को भारतवासी लक्ष्मी तत्व की स्थापना के पर्व के रूप में अधिक महत्व देते हैं। महालक्ष्मी को वैभव की देवी के रूप में शास्त्रों में वर्णित किया गया परंतु समय व्यतीत होने के साथ-साथ वैभव को धन के साथ जोड़ दिया गया और महालक्ष्मी को धन की देवी के रूप में देखा जाने लगा कई लोग धन, सोना, चांदी, धान्य आदि को ही श्रीलक्ष्मी समझ बैठे तथा उन्होंने इन्हीं भौतिक पदार्थों को श्री लक्ष्मी का प्रतीक मान उनका पूजन आरंभ कर दिया। शनै: - शनै: धन शक्ति प्रदर्शन का माध्यम भी बनने लगा तथा अन्य लोगों को नियंत्रित करना या उन पर दबाव बनाने की कोशिश करना तथाकथित लक्ष्मीपतियों का स्वभाव बनने लगा।
श्री माताजी निर्मला देवी जी ने अपनी अमृतवाणी में वर्णित किया है कि, "लक्ष्मी की पूजा करने वाले लोगों को याद रखना होगा कि उन्हें किसी पर भी ना तो दबाव डालना है, ना ही किसी पर नियंत्रण करना है....... लक्ष्मी तत्व को समझा जाना चाहिए कि भौतिक पदार्थ आपके प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए हैं।"
लक्ष्मीपति का अर्थ होता है उसका दिल बहुत बड़ा है कंजूस आदमी लक्ष्मीपति नहीं हो सकता। संतुष्ट करना लक्ष्मी जी का गुण है लक्ष्मी जी से आशीर्वादित होने का अर्थ है संतुष्ट होना। आप जान लेते हैं कि धन, सत्ता तथा अन्य बेकार की चीजों के पीछे मारे- मारे फिरना मूर्खता है। धन है तो उसका सदुपयोग करते हैं दूसरों की मदद करने में।
वास्तव में जब लक्ष्मी तत्व जागृत होता है तो आप वैभवशाली हो जाते हैं आपके अंदर संतोष, देने की प्रवृत्ति, सहनशीलता आदि गुणों का प्रादुर्भाव हो जाता है। ऐसा व्यक्ति जिसका लक्ष्मी जागृत होता है उसकी उपस्थिति मात्र ही संपूर्ण वातावरण को वैभवशाली बना देती है।
श्री माताजी के अनुसार"लक्ष्मी जी हमारी नाभि में निवास करती हैं जब हमारी कुंडलिनी नाभि पर आ जाती है,जब कुंडलिनी खुल जाती है तो हमारे अंदर वह जागृति आ जाती है जिससे लक्ष्मी जी का स्वरूप हमारे अंदर प्रकट हो जाता है ।"
लक्ष्मी तत्व की जागृति का सह उत्पाद धन तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है परंतु यही धन यदि नियंत्रित ना रहे तो हमें लक्ष्मी तत्व से दूर भी कर देता है। जब हम इस प्रकार के असंतुलन में चले जाते हैं तो प्रश्न उठता है अब हमें क्या करना चाहिए ? हम स्वयं को संतुलित किस प्रकार करें ? इसके लिए आत्मज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए कुंडलिनी का जागरण होना तथा परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से जुड़ना आवश्यक है। कुंडलिनी जागरण के पश्चात अंतर्परिवर्तन होता है तथा आप अपनी कमियों को देख सकते हैं और उन्हें सुधार सकते हैं तथा आप सदैव ही संतुलन में स्थित रह पाते हैं। संतुलन की स्थिति है वास्तव में लक्ष्मी तत्व की जागृति होती है।
कुंडलिनी जागरण तथा आत्म साक्षात्कार की अनुभूति टोल फ्री नंबर18002700800 अथवा यूट्यूब चैनल लर्निंग सहजयोगा से प्राप्त कर सकते हैं

