ईस्टर विशेष : आत्मतत्व अजर अमर है श्री कृष्ण वर्णित इसी सत्य को प्रमाणित करता है येशु का पुनर्जन्म

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नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥

'भगवद्गीता'


 परमपूज्य श्री माताजी प्रणित सहजयोग हमें अपने सूक्ष्म शरीर में स्थित सभी अवतरणों की न केवल पहचान कराता है बल्कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के बाद, नियमित ध्यान करने से हम हमारे तालुभाग पर और उँगलियों पर परमचैतन्य की अनुभूति  और दैवीय शक्तियों का साक्षात भी कर सकते हैं| सहजयोग विज्ञान के अनुसार श्री येशू का स्थान हमारे आज्ञा चक्र पर है।
आत्मतत्व अर्थात् ‘चेतन तत्व’ अजर, अमर और अविनाशी है । श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि आत्मा को शस्त्र से काटा नही जा सकता और न ही अग्नि से जलाया जा सकता है । यह तत्व भगवान येशू ने अपने जीवन और निर्वाण से सिद्ध कर दिया, भगवान येशू को जब तत्कालीन समाज कंटकों ने, धर्ममार्तंडों ने सूली पर चढ़ाया तब उन्होंने कहा, हे भगवान आप इन सभी को क्षमा करें, क्यों कि ये नही जानते, ये क्या कर रहे हैं। ’ अपने हत्यारों के प्रति इतना करूणा भाव, इतनी क्षमाशीलता इस महान अवतरण में थी । परमपूज्य श्री माताजी कहते हैं विश्व के सभी सच्चे साधक आज्ञाच्रक को पार कर सकें इसलिये उन्हें यह बलिदान देना पड़ा । आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने के लिये आज्ञाचक्र को लॉंघना अत्यंत महत्वपूर्ण सोपान था क्योंकि यह चक्र साधक का अहंकार और प्रति अहंकार नियंत्रित करता है । जब तक मानव को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं होता तब तक मानव यह नहीं जान पाता कि अहंकार और प्रतिअहंकार को किस प्रकार नियंत्रित किया जाय? और आत्मसाक्षात्कार के बिना मानव ‘क्षमाशीलता’ इस सद्गुण से भी परिचित नहीं होता और सदैव काम-क्रोध की अग्नि में जलता रहता है । परंतु आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के बाद मानव सदैव अपने आचरण और व्यवहार के प्रति जागृत रहता है, अपने चित्त में उत्पन्न गलत विचारों को क्षमा करता है, क्षमा मॉंगता है, आज्ञा चक्र पर ध्यान कर ‘हं क्षं’ मंत्र का उच्चारण करता है, तो शीतल चैतन्य लहरीयॉं उसके आज्ञा चक्र से और तालुभाग से निसृत होकर उसे परम आनंद प्रदान करती हैं।
परमपूज्य श्री माताजी कहते हैं, भगवान येशू ने अपने सूक्ष्म शरीर में स्थित पंचतत्व पर विजय प्राप्त की थी। मानव के तालुभाग की तुलना इस्टर के अंडे साथ की गयी है | जिस प्रकार अंडे से पक्षी का जन्म होता, उसी प्रकार परमपूज्य श्री माताजी की कृपा में सत्य के प्रत्येक साधक को पुर्नजन्म प्राप्त होता है । आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के बाद साधक का संपूर्ण परिवर्तन हो जाता है, उसका जीवन चैतन्यमयी, आनंदमयी बन जाता है । भगवान येशू की कृपा से साधक का भालप्रदेश और आँखे हीरे जैसी चमकने लगती हैं और धीरे-धीरे  वह साधक भी शांत, सुशील, कृतज्ञ और क्षमाशील बनकर दैवीय जीवन यापन करता है । सहजयोग ध्यान से उपरोक्त वर्णित अनुभव  साक्षात् सहज ही संभव हो जाता है।
आप अपने आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।

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