संत श्री ज्ञानेश्वर जी द्वारा वर्णित 'वस्तुप्रभा' अर्थात् चैतन्य की अनुभूति पाएं सहजयोग से
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत श्री ज्ञानेश्वर जी महाराज के तत्वज्ञान का केवल एक ही संदेश है, वो है ’जग ही असकी वस्तुप्रभा’ अर्थात जग उस ब्रह्म शक्ति का ,चित्त शक्ति का विलास है, प्रकटीकरण है । ’सर्वं खलू इदंब्रह्म’ अर्थात यह संपूर्ण नामरूपात्मक जग ब्रह्म शक्ति का अविष्कार है । इशावस्योपनिषद् में उपनिषद् कार कहते हैं , इस जगत मे जो कुछ भी स्थावर, जंगम है वो ईश्वरीय शक्ति से आच्छादित है । मुण्डकोपनिषद् में उपनिषद् कार कहते हैं, यह अमृतमयी ब्रह्म आगे, पीछे , दायें , बायें चहुं ओेर है | यह एकमेवाद्वितीय ब्रह्म ने जगत का रूप धारण किया हुआ है । संत ज्ञानेश्वरने इस ब्रह्मतत्व का साक्षात्कार अपने श्री गुरू निवृत्तीनाथ से पाया और ज्ञानेश्वरी और अपने अन्य तात्विक ग्रंथों में इस चिद्विलासवादी तत्व को, चैतन्य तत्व को प्रतिपादित किया , अनेक उपमा, दृष्टांत देकर सामान्य जनों को समझाया । इसे सहज योग ध्यान द्वारा हम जान सकते हैं, अनुभूत कर सकते हैं | सहजयोग संस्थापिका परमपूज्य श्री माताजी ने सामूहिक आत्मसाक्षात्कार की पद्धति की खोज कर साधक को इस ब्रह्म शक्ति से अनुभूत कराया । सामूहिक कुंडलिनी जागरण कर एक सामान्य गृहस्थ को साधक और संत की श्रेणी में खड़ा कर दिया । सहजयोग में जब साधक की कुंडलिनी जागृत होती है तो वह आदिमाया, उध्वर्गमाी होती है । सारी भारी चीजें नीचे गिरती हैं लेकिन कुंडलिनी शक्ति ऊपर की ओर उठती है , क्यों कि यह अग्नि के समान है । कुंडलिनी में अग्नि की तरह शुद्ध करने की शक्ति होती है । अग्नि की यह विशेषता है कि, वह जो वस्तुएं जलने योग्य हैं उन्हे जला देती है और जो वस्तुएँ नही जल सकतीं उन्हें शुद्ध कर देती है । जैसे हम दिवाली के समय अपना सारा घर स्वच्छ कर , बेकार, अनुपयोगी चीजें इकठ्ठा कर मैदान में जला देते हैं , उसी प्रकार जब कुंडलिनी मॉं उर्ध्वगामी होती हैं तब हमारा आत्मदीप प्रकाशित कर, हमारे अंदर की सारी अशुद्ध इच्छायें , अशुद्धविचार, अशुद्ध भावनायें , अहंकार और अन्य तमाम व्यर्थ की चीजों को जला देती हैं । ये सब चीजें स्थायी नहीं होती , इसलिये जल जाती हैं । जो चीजें शाश्वत नहीं हैं, कुंडलिनी उन्हें नष्ट कर देती है ।
इस प्रक्रिया में ‘आत्मदीप’ प्रकाशित होता है, उर्ध्वगामी कुंडलिनी की यह शिखा अग्निसमान तेजस्वी होकर भी बहुत सुंदर शीतल और कोमल होती है । यह हर उस चीज को नष्ट करती है, जो हमारे अध्यात्मिक उत्थान में रूकावट डालती है, अशुद्ध करती है , या बीमारी जैसी है और अंतत: यह हमारे पूरे सिस्टम को शांत, शीतल और हलका कर देती है । हमारे अंदर का प्रेमरस जागृत कर देती है । एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के हृदय में वह सदैव प्रेम की लहरियॉं उत्पन्न करती है, उसमें श्री गणेश की श्रध्दा, समर्पण और श्री हनुमान की शुद्ध क्रिया शक्ति जाग्रत होती है । उसे लगता है कि अगर जग असकी ‘‘वस्तुप्रभा’’ अर्थात चैतन्य का प्रगटीकरण है, तो यह प्रगटीकरण ,इसका आनंद सभी को मिलना चाहिये । कुंडलिनी शक्ति की यह सुकोमल दीपशिखा विश्व के सारे सहजयोगियों ने अनुभूत की है , और आप भी कर सकते हैं, आईये सहजयोग सीखते हैं ।
सहजयोग पूर्णतया नि:शुल्क है। सहजयोग हेतु आप जानकारी निम्न साधनों से पा सकते हैं। टोल फ्री नं – 1800 2700 800। बेवसाइट - sahajayoga.org.in यूट्यूब चैनल – लर्निंग सहजयोगा