"पिता – छांव भी, छाया भी"
संपादकीय: (फ़ादर्स डे विशेष)
हर साल जून का तीसरा रविवार पिता के नाम किया जाता है, लेकिन एक पिता का जीवन हर दिन अपने बच्चों के नाम होता है। जब हम मां की ममता की बात करते हैं, तो पिता का तपस्वी प्रेम अक्सर परदे के पीछे रह जाता है। जबकि सच्चाई यह है कि पिता उस नींव की तरह होते हैं, जिस पर पूरी ज़िंदगी की इमारत खड़ी होती है।
पिता वो हैं जो खुद धूप में चलते हैं ताकि बच्चों को छांव मिल सके।
वो कम बोलते हैं, पर हर ज़रूरत को बिन कहे समझ जाते हैं।
वो अपनी ज़रूरतों को दबाकर बच्चों की ख़्वाहिशों को पूरा करते हैं।
पिता सख्त दिखते हैं, लेकिन दिल के सबसे नरम कोने में रहते हैं।
आज के दौर में जब हम आधुनिकता और व्यस्तता में रिश्तों को समय नहीं दे पाते, तब फ़ादर्स डे एक अवसर बनता है – उस खामोश नायक को शुक्रिया कहने का, जिसने हमारे लिए अपनी दुनिया सीमित कर दी।
एक पिता सिर्फ पालनकर्ता नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, रक्षक और प्रेरणा का स्तंभ होते हैं।
उनका साथ भले ही शब्दों में कम दिखे, लेकिन उनकी मौजूदगी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ताकत होती है।
आज इस पिता दिवस पर आइए, हम सिर्फ एक उपहार नहीं, एक वादा दें –
कि हम उनकी भावनाओं को समझेंगे, उनके त्याग को सराहेंगे और हर दिन उनके चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करेंगे।
"पिता सिर्फ रिश्ता नहीं, एक अहसास है – जो जीवन भर हमारे साथ चलता है।"
पिताओं को सलाम!
गोपाल गावंडे,
प्रधान संपादक, रणजीत टाइम्स