अब पार्टी, तब ब्याह... तब होता था पाणिग्रहण संस्कार,
पुरा पुरा ब्याह,
अब होती है केवल केवल पार्टी, और सब तबाह...
पता नहीं है पार्टी जन्मदिन की या शादी की
बस खाया पिया मुह पर बोल आये वाह
अब यहाँ भोजन पेट तो भर देगा,
पर आनंद कभी आता ही नहीं,
क्योंकी थाली लोटा आसन पाटले
का सिस्टम अब रहा नहीं..
और तो और,
दुल्हा दुल्हन है कहाँ, किसी को पता नही
पेट की गड़बड़ी को भुलकर
56 भोग से थाली को पुरा सजाया
थोड़ा खाया थोड़l गिराया,
झूठा बहुत बचा
बचे को कचरे का डिब्बा दिखाया,
और पहले होती थी पंगत,
एक दूसरे की संगत
बनती थी दाल सब्जी पुरी
नुक्ति सेव और,और क्या..रायता,
कभी खोपरापाक की होती रंगत,
इनमें ही छप्पन भोग स्वाद पा जाते,
अरे झूठा क्या छोड़े,
मजे ले लेकर खाते,
पूरी थाली चाट जाते,,,,,
आज पार्टी में,
छोटी प्लेट आयटम अधिक
दाल सब्जी गिरे,या गिरे पकवान,
सब गिरे
डर कीकोई बात नहीं,,,
पहले थोड़ा रायता गिरे
हँसी ठिठोली करते,
खूब मजाक उड़ाते,
सारा रायता फैला दिया
समाज मोहल्ले में,
यह कहते भी जाते....
पहले के ब्याव को कोई याद करे,
लगन लग्या बिना पंगत नि लगाता,
दुल्हा दुल्हन आशीर्वाद दिया नि
सबसे मिल्या नी, घर कसा जाता,....
अब टाइम नि है भाई, .
जल्दबाजी खूब मचाई
नि मालूम कोंन आया कौन गया
स्टाल पर भीड़ लगाई,
थोड़ा खाते
बहुत झूठा छोड़ जाते..
कैसे भी पेट भर जाता,
पर ऐसीडीटी साथ ले आते,
और कमियों का किस्सा बनाते,,
उसे नमक मिर्च मिलाकर सुनाते,
पहले,प्रेम से मिलाप होता.
मौज मस्ती भी खूब होती,
प्यार ही प्यार बरसता,
थोड़ा थोड़ा प्यार बाटते,
बहुत सारा प्यार ममता लेकर
आनंद में बदल,
मन मे भर घर ले आते..

विपिन जैन "श्रीजैन"

