खुशहाल परिवार के लिए बचपन से ही सर्वशक्तिमान परमात्मा के नियमाचरणों का ज्ञान आवश्यक है
सहजयोग प्रवर्तिका श्री माताजी निर्मला देवी जी ने बच्चों के विकास के लिए किस प्रकार का वातावरण होना चाहिए इसका वर्णन करते हुए कहा है कि,
सर्वप्रथम हमें घर को सींचना होगा, घरों को सुसंस्कृत बनाना होगा- अपने बच्चों के लिए एक उपयुक्त घर बनाना आज बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य है, ये किया जाना चाहिए।
एक उपयुक्त घर वही है जहाँ आपसी स्नेह सम्बंधों में मधुरता हो, मिल जुलकर रहने का प्यार भरा वातावरण हो जहाँ सब लोग पारिवारिक मर्यादाओं का प्रसन्नता पूर्वक पालन करते हों और सर्वोपरि जहाँ ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा-विश्वास व भक्ति भावना हो।
घर की मर्यादा का प्रथम अंग है अभिवादन प्रणाम, नमस्कार। प्रत्येक घर में यह मर्यादा होनी चाहिए कि प्रातः सोकर उठते हुए और रात्रि को शयनार्थ जाते हुए सर्वप्रथम ईश्वरीय शक्ति को नमन करें। परिवार में छोटे अपने से बड़ों को प्रणाम करें व बड़ों के आदेशों का सहर्ष पालन करें। बड़ो को चाहिए कि छोटों को उत्तम, आवश्यक तथा उचित आदेश ही दें और छोटों के निवेदन पर समुचित ध्यान दें।
घर के लोग हास विनोद से युक्त हों हँसने और मुस्कराने वाले लोग सबके मन को मोह लेते हैं। तुम सब फूल बनो, फूल के समान सदा प्रफुल्ल रहो।
घर के लोगों को तृप्त यानी अपने जीवन में संतुष्ट होना चाहिए। (घरों में) अपने प्रेममय माता-पिता के माध्यम से बच्चों को जान लेना चाहिए कि पावन तथा निःस्वार्थ प्रेम ही जीवन में महत्वपूर्ण है तथा नैतिकता बहुमूल्यतम सद्गुण है, धन से भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। घर में नियमित पूजा-अर्चना, आरती, स्तुति आदि से ऐसा धार्मिक परिवेश बनाएं जिससे बच्चे के मन मे परमात्मा के विषय में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो। बचपन से ही परमात्मा के साथ उसे जोड़े। उसे बताइये कि ये हम सबके परमपिता हैं, उन्होंने ही सबको बनाया है, वह हमें प्यार करते हैं, रक्षा करते हैं पर उनके नियम कठोर हैं, वह सजा भी देते हैं। ...... सर्वशक्तिमान परमात्मा के नियमाचरणों का ज्ञान बच्चों को होना चाहिए। बच्चों को समझना चाहिए कि कितनी विविधता के साथ परमात्मा ने एक विश्व की रचना की है... और प्रकृति कैसे एक दिव्य अनुशासन बद्ध है।
सहजयोग ध्यान द्वारा बच्चों में इन गुणों को सहज ही विकसित किया जा सकता है व उनके भविष्य को सुसंस्कृत व खुशहाल बनाया जा सकता है।
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