स्वतंत्रता का अर्थ है स्व के तंत्र की प्रतिष्ठा व उसका संपूर्ण ज्ञान
स्वतंत्रता दिवस विशेष
सहजयोग संस्थापिका श्री माताजी निर्मला देवी जी ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में श्री महात्मा गांधी के साथ सक्रिय भूमिका निभाते हुए देश की स्वतंत्रता में अपना योगदान दिया। भारत व भारतीय संस्कृति सदैव ही श्री माताजी के जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं। भारत के संदर्भ में श्री माताजी के विचार थे कि,
"अपना देश शांति प्रिय देश है। इस देश ने किसी भी देश पे अगाड़ी नहीं करी, किसी देश को लूटा नहीं, किसी भी देश की जमीन अपने हाथ नहीं ली। ये शांति कहां से आई? ...ये इस धरती की विशेषता है जिस धरती पर आप बैठे हैं उसी धरती की विशेषता है कि हम लोग शांति प्रिय लोग हैं, ये नियंत्रण हमारे ऊपर अपने आप आया हुआ है, स्वयं आया है तो अंदर की शांति प्रस्थापित होती है।"
(प. पू. श्रीमाताजी, 18-12-98, दिल्ली)
श्री माताजी का कहना है कि, "भारतीय संस्कृति बहुत ऊँची है यही एक दिन संसार का मार्गदर्शन कर सकती है।"
श्री माताजी ने वास्तविक स्वतंत्रता का वर्णन करते हुए कहा है कि,
स्वतंत्र में,- स्व-का अर्थ है-स्वयं का, तथा तंत्र- अर्थात मशीनरी। इसलिए इन शब्दों का अर्थ हमेशा स्वयं से प्रेरित होना चाहिए जब भी हम 'स्वतंत्रता' की बात करते हैं तो यह अवश्य समझना चाहिए कि यह स्वयं का तंत्र है। अतः स्वतंत्रता से संबंधित इस गहरे अर्थ को समझने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले अपने आप को जानना चाहिए। स्वराज की अवधारणा की व्याख्या करते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें भारत भूमि पर अपने आंतरिक स्वामित्व को समझना चाहिए और इसका विशेषाधिकार प्राप्त नागरिक होने पर गर्व करना चाहिए।
कुंडलिनी जागरण द्वारा स्थापित सहजयोग ने संपूर्ण विश्व को भारत की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत के गूढ़ रहस्यों का परिचय दिया है तथा स्वतंत्रता के वास्तविक अर्थ से परिचित कराया है। स्व के तंत्र को समझने के लिए सहजयोग में आपका स्वागत है।
आप अपने आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करने हेतु अपने नजदीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं ।