मानवीय संबंधों का आनंदमय शुद्ध स्वरूप है मित्रता
वर्तमान पीढ़ी के लिए अगस्त का महीना मित्रता दिवस अर्थात फ्रेंडशिप डे के रूप में विशेष महत्व रखता है परंतु वास्तव में मित्रता का अर्थ क्या होता है यह कितने लोग समझते हैं, हम नहीं कह सकते। भारतीय समाज में पुरातन काल से मित्रता की अनेकों कहानियां भगवान से लेकर आम इंसान तक हमें सुनने को मिलती हैं। जिसमें कृष्ण, सुदामा की दोस्ती के बारे में सभी जानते हैं। वास्तव में मित्र कैसा होना चाहिए व आपके अपने मित्र के प्रति क्या कर्तव्य होने चाहिए यह हम तभी समझ पाते हैं जब हम हृदय से किसी को अपना मित्र स्वीकार करते हैं व अपने आपको उसकी मित्रता में समर्पित करते हैं श्री माताजी निर्मला देवी जी ने इस विषय में सहजयोगियों को इस प्रकार दिग्दर्शित किया है कि,
मित्रता एक ऐसी चीज़ है जिसमें आप अपनी गुप्त बातें, अपनी समस्याएं सांझा कर सकते हैं।.....यह समझने की बात है कि सभी सहजयोगी वास्तव में एक-दूसरे के मित्र हैं। मैं समझती हूँ कि मित्रता का नाता किसी भी ऐसे दूसरे नाते से कहीं ऊपर है, जिसके बारे में हम सोच सकते हैं, क्योंकि हमारी मित्रता में से कमाने लायक कुछ नहीं है। यह मित्रता कभी खत्म नहीं होती और हम बस इसका आनंद लेते हैं, यही सब कुछ है। तब आप कभी-कभी एक-दूसरे की टांगे खींच सकते हैं। दूसरे व्यक्ति का मखौल बनाकर, आप उस व्यक्ति के साथ थोड़ा मज़ाकिया हो सकते हैं। यह सब ठीक है, यही मित्रता है। लेकिन यह हमारे बीच आपसी संबंधों को समझने का शुद्धतम रुप है। और मित्र वही है जो हमेशा बिना किसी कारण व तुक के, अपने मित्र के बारे में चिंतित रहता है सहजयोग में आने से पहले, आपके एक या अधिकतम दो मित्र हो सकते थे। तीन का अर्थ है भीड़, आप तीन लोगों को अपना मित्र नहीं बना सकते । लेकिन सहजयोग में हम सभी मित्र हैं, शुद्ध मित्रता है। यह मित्रता अत्यंत सुंदर तरह की है, जिसमें आप दूसरे व्यक्ति के आनंद का मज़ा लेते हैं। चैतन्य लहरियों में आप इसका आनंद लेते हैं यदि आप दूसरे सहजयोगी की चैतन्य लहरियों को महसूस करते हैं, तो आप वास्तव में आनंद लेते हैं। (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी, 9 जुलाई 1989) सहजयोग ध्यान द्वारा हम स्वयं को इस योग्य बना पाते हैं कि मित्रता के सही मायने समझ सकें। सहजयोग की जानकारी टोल फ्री 18002700800 पर प्राप्त कर सकते हैं