सहज की छाया में

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चारों ओर चैतन्य बहे, शांति की मधुर धारा सी,
सहज योग के स्पर्श से, जागे आत्मा प्यासी सी।

न कोई द्वंद, न कोई शोर, भीतर का दीप जले,
श्री माताजी की कृपा से, मन के सब ताले खुले।

हवा भी मंत्र जपे यहां , वृक्ष भी ध्यान करें,
प्रकृति भी मौन हो जैसे, सत्य की बात  कहे।

हर धड़कन में उठे सुर, गूंजे परम ज्योति का नाम,
सहज योग में मिल जाए, जीवन का सच्चा धाम।

जहां न सीमाएं, न बंधन, बस आत्मा का विस्तार,
श्री माताजी की गोद में, हर पल लगे त्यौहार।
-जय श्री माताजी 

प्रोफेसर प्रवीण खीरवडकर

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