भारत का जल संकट — आंकड़ों और समाधान के साथ गहरी पड़ताल
संपादकीय लेख
रणजीत टाइम्स | 28 मई 2025, बुधवार
भारत आज उस मोड़ पर खड़ा है जहाँ जल संकट केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक अस्तित्व का सवाल बन चुका है। चाहे सिमरोल, चोरल, खंडवा, बड़वाह, महेश्वर हो या ओंकारेश्वर — हर क्षेत्र पानी की गिरती सतह और घटते स्रोतों से जूझ रहा है। आइए, 28 मई 2025 के संदर्भ में इस संकट को गहराई से समझें।
1. ताज़ा स्थिति — 2025 के आंकड़े
भूजल स्तर
Ministry of Jal Shakti की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 60% जिले भूजल संकटग्रस्त हैं।
विशेष रूप से दिल्ली, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद जैसे शहरों में अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक वहाँ भूजल खतरनाक स्तर तक गिर सकता है, अगर अभी से कदम न उठाए गए।
कृषि क्षेत्र में संकट
देश के 54% किसान जल संकट की वजह से अपनी फसलें खोने या खेती छोड़ने की कगार पर हैं।
रिपोर्ट बताती है कि 2025 तक देश की 40% कृषि भूमि में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं बचा।
शहरी मांग
2025 में भारत के शहरी इलाकों में पानी की मांग 250 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) से अधिक हो गई है, जबकि उपलब्धता सिर्फ 150 BCM है।
2. बारिश — बेकार जाती अमूल्य वर्षा
भारत में औसतन 1170 मिमी बारिश होती है, जो दुनिया के औसत से ज्यादा है।
फिर भी, देश इसका सिर्फ 8–10% ही संरक्षित कर पाता है।
अगर वर्षा जल संचयन हर स्तर पर लागू किया जाए, तो सालाना 1.2 ट्रिलियन लीटर अतिरिक्त पानी इकट्ठा किया जा सकता है — जो पूरे दिल्ली और मुंबई की सालाना जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त होगा।
3. पानी की बर्बादी का गणित
शहरी इलाकों में: हर व्यक्ति रोज़ाना औसतन 135–150 लीटर पानी इस्तेमाल करता है, जिसमें से 40–50% सीधे नालियों में चला जाता है।
कृषि में: परंपरागत सिंचाई (बाढ़ सिंचाई) से 30–40% पानी व्यर्थ बहता है, जबकि ड्रिप सिंचाई से यह बच सकता है।
4. समाधान — आंकड़ों के साथ रोडमैप
घरों में:
वर्षा जल संचयन से हर घर सालाना 50,000–60,000 लीटर पानी संरक्षित कर सकता है।
लीक हो रहे नल और पाइप सुधारने से रोज़ाना 20–30 लीटर पानी की बचत संभव है।
कृषि में:
देश में ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई केवल 7–10% हिस्से में लागू है। अगर इसे 50% तक बढ़ाया जाए, तो हर साल 80–100 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी बच सकता है।
गन्ना और चावल जैसी पानी-खपत वाली फसलों की जगह मोटे अनाज (millets) को बढ़ावा देना जरूरी है।
शहरी योजना में:
नगर निगमों को हर नई बिल्डिंग में वर्षा जल संचयन अनिवार्य करना चाहिए।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के जरिए 30% शहरी जल रिसाइकल किया जा सकता है।
नीति स्तर पर:
भूजल के अनियंत्रित खनन पर सख्त नियंत्रण।
पानी का मूल्य निर्धारण ईमानदारी से ताकि लोग इसका मूल्य समझें।
5. भविष्य की चेतावनी
अगर मौजूदा हालात बने रहे, तो 2030 तक भारत में जल की मांग उपलब्धता से 1.6 गुना ज्यादा हो जाएगी, जिससे 40 करोड़ लोग सीधे प्रभावित होंगे।
निष्कर्ष: 28 मई 2025 की पुकार
आज 28 मई 2025 को यह सवाल हर भारतीय के सामने है — क्या हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं?
पानी बचाना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं, हम सभी की जिम्मेदारी है।
छोटे-छोटे कदम मिलकर बड़े बदलाव ला सकते हैं — एक बाल्टी कम इस्तेमाल करना, वर्षा जल संग्रहीत करना, बच्चों को पानी की कद्र सिखाना।
अगर आज कदम नहीं उठाए, तो कल हमारे पास सिर्फ सूखी ज़मीन और सूखी आँखें बचेंगी।
आपका — गोपाल गावंडे
मुख्य संपादक, रणजीत टाइम्स