अंतरराष्ट्रीय योग दिवस - प्राचीन योग का प्रयोग मंडलेश्वर में हजारों साल पहले हुआ था

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दीपक तोमर 
मंडलेश्वर : आज दुनिया भर के लोग जिस योग दिवस को मना रहे है वह योग भारत की सदियों पुरानी सनातन संस्कृति का अंग रह है।और योग का भारत में कई बार सार्वजनिक उपयोग भी किया गया हम महाभारत काल में जाएं तो उज्जैन ध्यान योग और शिक्षा का बड़ा केंद्र था जहां  सांदीपनी ऋषि अपने शिष्यों को शस्त्र शास्त्र के साथ योग में भी पारंगत करते थे भगवान श्रीकृष्ण ने यहां पढ़ाए जाने वाले 64 विषयों में विशेष योग्यता प्राप्त की थी उन्हें योग का अदभुद ज्ञान था जिसके द्वारा वे अदृश्य भी हो सकते थे ।महाभारत काल में दुर्योधन और भीम दोनों ही पानी के अंदर श्वास लेने की क्षमता रखते थे।युद्ध के दौरान दुर्योधन ने एक सरोवर में स्वयं को छुपाया गया था यह सभी भारतीय योग की अदभुद शक्ति से ही संभव हुआ है।भगवान बुद्ध के योग की शक्ति हो या स्वामी विवेकानंद जी की योग से सिद्धि प्राप्त करना यह योग की शक्ति का ही प्रभाव है एक मानव का शरीर योग के द्वारा भौतिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाया जा सकता है।आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सरकारी संस्थाओं के योग दिवस मनाया जाएगा। नगर के जिला न्यायालय शासकीय स्कूलों और महर्षि मंडन मिश्र महाविद्यालय में सामूहिक योग किया जाएगा। महेश्वर नगर के जिला स्तरीय कार्यक्रम आयोजित होगा जिसमें कलेक्टर पुलिस कप्तान और विधायक सहित गणमान्य शामिल होकर योग करेंगे।
मंडलेश्वर में हुआ था योग का साक्षात् प्रयोग
धार्मिक और पवित्र नगर मंडलेश्वर प्राचीन समय से ही योग और शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था। लेखक इतिहासकार दुर्गेश राजदीप ने बताया कि जहां आचार्य मंडन मिश्र के गुरुकुल में शास्त्र के साथ योग की शिक्षा भी दी जाती थीं महर्षि मंडन मिश्र की पत्नी भी योग की बड़ी जानकर थी।निमाड़ के ख्यात लेखक स्वर्गीय महादेव प्रसाद चतुर्वेदी की पुस्तक तू वह है में इस बात का विस्तार से जिक्र किया गया है।जब आदि शंकराचार्य मंडन मिश्र से साक्षात्कार करने पहुंचे थे तब उनका सामना आचार्य मंडन मिश्र के बाद भारती देवी से हुआ था जिसमें आदि शंकराचार्य भारती देवी के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके थे तब उन्होंने भारती देवी से उन प्रश्नों का जवाब जानने के लिए छह मास का समय मांगा था ।इसके बाद उन्होंने योग बल से ही परकाया प्रवेश किया था।यह योग दुर्लभ योग की श्रेणी में आता था जिसके साधक उस समय बहुत कम होते थे।इस योग के मद्धम से आदि शंकराचार्य ने एवं शरीर छोड़ कर दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश किया था।

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