सूक्ष्म शरीर के ज्ञान द्वारा ही उत्क्रांति के निरानंद की प्राप्ति संभव है
हम क्या हैं? हमारे अन्दर कौन-कौन सी व्यवस्था परमात्मा ने की है, और किस मशीन के कारण, किस तन्त्र के द्वारा हम परमात्मा को प्राप्त होंगे ? सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात् साधक इसे स्वयं ही अनुभव कर सकते हैं।- उत्क्रान्ति के अन्तिम भेदन तक पहुँचने के लिये हमारे शरीर में सूक्ष्म तन्त्र विद्यमान हैं।
नाड़ीतन्त्र : हमारे नाड़ीतन्त्र में तीन मार्ग हैं-
1 बायीं ओर का मार्ग ईड़ा नाड़ी कहलाता है। यह सूक्ष्म नाड़ी है जो बायें अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र का पोषण करती है। इसे चन्द्र नाड़ी भी कहते हैं। यह मार्ग हमारे भावनात्मक तथा हमारे भूतकाल की रचना करता है। अवचेतन मन इसी मार्ग द्वारा सूचना प्राप्त करता है।
2 दायें मार्ग को पिंगला नाड़ी कहते है यह मार्ग दायें अनुकम्पी नाड़ीतन्त्र के लिये कार्य करता है। पिंगला नाड़ी शरीर-मस्तिष्क के लिये कार्य करती है अर्थात मानव के बुद्धिवादी कार्यों के लिये । दायें भाग में अतिचेतन मन है जो हमारे भविष्य की रचना करता है। यह सूर्य नाड़ी है।
3 बीच का पथ सुषुम्ना कहलाता है। इसी रास्ते से ब्रह्मरन्ध्र का भेदन करने के लिये तथा सर्वव्यापक शक्ति की सूक्ष्म ऊर्जा में प्रवेश करने के लिए कुण्डलिनी गुज़रती है।
चक्र - हमारे उत्थान मार्ग (सुषुम्ना मार्ग) पर सात सूक्ष्म ऊर्जा चक्र हैं। कुछ सहायक चक्र भी हैं। हमारी विकास प्रक्रिया के दौरान इन सूक्ष्म चक्रों का सृजन हुआ।
1 मूलाधार चक्र (श्रोणीय Pelvic )
2 स्वाधिष्ठान चक्र (महाधमनी Aortic )
3 नाभि चक्र ( भवसागर Void)
4 अनाहत चक्र (हृदय Cardiac )
5 विशुद्धि चक्र (Cervical Plexus )
6 आज्ञा चक्र (पीयुष और शंकुरूप ग्रन्थियाँ- Pituitary & Pineal Glands)
7 सहस्रार चक्र (ब्रह्मरन्ध्र - Fontanelle)
कुण्डलिनी - कण-कण में व्याप्त हो जाने वाली सूक्ष्म शक्ति (परम- चैतन्य) से हमारा सम्बन्ध जोड़ने के लिये एक शुद्ध इच्छा-शक्ति है जिसे मनुष्य की पावन अस्थि में रखा गया है। यही कुण्डलिनी कहलाती है। यह कुण्डलाकार होती है। यह साढ़े तीन कुण्डलों में विद्यमान है। कुण्डलों का भी देवी गणितीय महत्व है। पावन त्रिकोणाकार अस्थि 'सेक्रम बोन' कहलाती है। यह पवित्र अस्थि मेरुरज्जु (रीढ़) के आधार पर स्थित है।
आत्मा : हमारे अस्तित्व में एक 'स्वचालित ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम कार्यरत है। यह 'स्व' आत्मा है जो इस स्वचालित नाड़ीतन्त्र को चला रहा है। यह आत्मा हर मनुष्य के हृदय में निवास करती है। आत्मा, परमात्मा का प्रतिबिम्ब है, जबकि कुण्डलिनी परमात्मा की शक्ति का प्रतिबिम्ब है।
इस सूक्ष्म तंत्र को सहजयोग ध्यान के माध्यम से सहज ही अनुभव किया जा सकता है तथा इसकी जागृति भी। सहजयोग पूर्णतया नि:शुल्क है। सहजयोग द्वारा आनंद और अनगिनत लाभ लेने हेतु आप जानकारी निम्न साधनों से पा सकते हैं। टोल फ्री नं – 1800 2700 800। बेवसाइट - sahajayoga.org.in यूट्यूब चैनल – लर्निंग सहजयोगा