"समय है अपनों को साथ देने का: रिश्तों की अहमियत को समझें"

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आज की तेज़ रफ्तार और भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अक्सर अपने अपनों और रिश्तों को पीछे छोड़ देते हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है कि जो लोग आज 60-70 की उम्र में हैं, वे हमारे जीवन के अनमोल हिस्से रहे हैं। उन्होंने अपना समय और प्यार देकर हमें इस काबिल बनाया है कि आज हम उनके बुढ़ापे का सहारा बन सकें।
यह समय है उन्हें वह खुशी देने का जो सिर्फ हमारा समय और साथ दे सकता है। हमारे माता-पिता, दादा-दादी, या परिवार के बड़े-बुजुर्ग अब कुछ समय के मेहमान हैं। उनकी उम्मीदें बहुत छोटी हैं—बस थोड़ा समय, थोड़ा साथ और थोड़ी सी प्यार भरी बातें। यही उनका सबसे बड़ा सहारा है।
सिर्फ परिवार ही नहीं, बल्कि वे दोस्त, पड़ोसी और रिश्तेदार भी, जिनके साथ कभी हमने अपनी जिंदगी के अनमोल पल गुजारे, उन्हें भी समय देना बेहद जरूरी है। पुराने पल, पुरानी यादें हमें सुकून और शांति का एहसास कराती हैं। क्यों न उन पलों को फिर से जिया जाए?
समय निकालें, अपने अपनों से मिलें। जीवन में खुशियों का असली मतलब यही है। रिश्तों में सुकून और संतोष की जो भावना है, वही हमें जीवन में सबसे बड़ा सुख दे सकती है।
"याद रखें, समय जाएगा पर अपनों को लेकर। उनके साथ बिताया गया समय ही आपकी सबसे बड़ी पूंजी बनेगा।"
यह संदेश उन सभी के लिए है जो अपने अपनों की अहमियत को पहचानते हैं। आइए, रिश्तों को समय दें और जीवन को खुशियों से भर दें।

आपका संपादक, गोपाल गावंडे
(रणजीत टाइम्स)

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